ग्राम्य अर्थ शास्त्र | Gramay Arth Shastr

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Gramay Arth Shastr by पं दयाशंकर दुबे - Pt. Dyashankar Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) गरीय किसान रोज इलवा पूरी उड़ता है उसे दुनिया मोग पिलासी कहती है । लेकिन अमोदार हलवा पूरी ग्रायश्यक समभते हं। उनके दिसाव से शमोरी ठाठ के अन्दर रेडियो, बिजली, मोटर श्रादि स्थान रखते हैं। इस बात से रइनेंसइन के दर्जे की समम्या उठती है। एक मजदूर किस तरद की मिन्‍्दगा वसर करता है पचास साठ रुपया मालिक तनस्वाद पाने वाले क्लर्प साहय किस प्रकार रहते हैं ८ मद्दीने में सौ दा सौ रुपए. पैदा कर लेने वाले दूफानद्र तथा उद्योग घघे वाले कैसा जीवन ब्यतात करत ई और हजार पाँच सौ रुपये मादवारी फ्टकारने घाले जमीदार, डाक्टर या कलबृटर साहच किस मौन से रहते हैं, इन सब बातों का वर्सन व विवेचन रहन-सइन के दर्जा ($(5709470 ०1 ]1ए१709) के श्रन्तमत क्या जाता है। जैसे जैसे श्राय बढती है बैस दी बैस मनुष्य अच्छी जि दगी बशर करने की कोशिश करता हे ओर उसके रहन सहन का दर्जा ऊपर को उठता जाता है। इतना दी नहीं किसा देश के रहने वाले को किस प्रकार रहना चाद्दिये, वद्दों की सरकार को उपभोग (0075ण्ए/०) के रुम्द'घ में किन किन बातों में दखल देना चाहिये इत्यादि और भी बहुत सी बातें इमें उपमोग के श्रन्तगंत ह्वी माननी पढ़ती हैं। श्रस्तु हम जान गए, कि श्रय-शात्र में उपमोग (098077७9007) का मतलब कसी चौज़ के ऐसे उपमोग से होता दे जिससे किसो आदमी को सतोप हो | अय-शास्त्र के इस माग में यइ् विचार किया जाता दे कि मनुष्य जो तरहतरद की वस्तुओं का उपमोग करता है क्‍द्टों तक उसके और देश के लिये लामटायक दे शरीर कस द्वालत में वद द्वानिरर होता है | लगे हाथ इस बात का भी विचार किया जाता है कि मनुष्य कैछा रहता है और उसका रहन सइन का दजा क्या होना चाहिये ठया उठ दर्जा को बनाए रखने के लिये देश को सरकार का क्या करना चाब्यि १ विनिमय (६ ०)0 1 ०] लेडिन सोचने की वात है कि आ्राजकल कोइ आदमी अपने श्राप मच लब की खारी बस्दुयें नहीं उत्पन करता। कोइ केवल क्सामी करता है तो पर म पाली 21 है दो कोई चमार । चोे से आने वाले पैठों से




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