नयी कविता में सौन्दर्य बोध तथा अन्य निबन्ध | Nayi Kavita Me Soindarya Bhodh Aur Anya Nibandh

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Nayi Kavita Me Soindarya Bhodh Aur Anya Nibandh by गायत्री वैश्य - Gayatri Vaishya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ १ ) प्रथम स्माघोनता संग्राम ( १८५७ हैं* ) के पराचाद्‌ मारतीय पराजीसता भ्रभोगति डी सीमा ठक पहुंच गईची।! सबियों से एक के प्रतस्तर बूसरे शासकों ढी दासता श्र खह्ता में बेंगा हुआ सासत प्रपती समस्त गिूदियों से हाथ धो बैठा बा शेप थी केवस कड़ियाँ प्रस्ण पररम्पराबें भ्रप्तिष्ता भौर प्रज्ञात की सर्वप्रासी ए्मालामें । ऐस ही समय में साग्प भ्रसदा इर्भाप्प छे देश में विक्टोरिया का झासन प्रारम्म हुआ । विदेशों सम्पता ठणा विज्ञात का हंबीत प्रकाश हुपा । देश में शामिक तथा सामाजिक भारदोसतों के प्रसता मद्दाष्माप्रों का प्रगिर्माव हुपा । फसत' सर्वत्र जाडृति की किरणों विकसिष्ठ होने समी । देश कौ उपयुक्त प्रजनत तथा उत्तत दमा के मिसे छुसे स्वर हमें प्राभुनिक हिस्दी कांस्य मे शुमाई देते हैं ! देश की दत्काशीय भ्रधोयति का चित्र भारतेखु हरिएचस्ट्र की इस पंक्तियों में प्रंकित है 5 मयो झाज बत ठेज शेप बस ज्ञान हंप्ताई। बुद्धि बीएा श्री राह्याद धुरता गिशाई॥! भालस काबर पतो निरहमता प्रव धाई। रही ग्रूरता बै परस्पर रुशह ध्षराई ४ सब गि्भि शासी मारत प्रणा कहे श रहो प्रबसंद प्रद । जागो जामा कस्णा मतत फेरे जागिहौँ साथ कम जिस मारत भूमि में कभी छत बास्य की बहुसता शिक्य कला कौसल की पूर्णता पी उसी देश के शौों को भीर मांयते देखकर कवियों का हृएय बेदता से तड़प रहा है। प० प्रम्दिकादत्त ब्यास देश म ध्याप्त प्रम्पकार से घश्राकर निराष्ठा में प्रात छोड़ने तक को बप्रत हैं. “ हाय। द्वाय । गहिं सश्वी बात हम पै श्रग मारत । सजि हैं हिम बलि श्रान यहै हिप तिश्चय भारत | बरि गौ यह पदराहुर उप उत्तट जम दित गी माजता से श्र भूत है। मारतलु हरितषिख ते टूण्म गी ऐसी ही ध्याहुल में समस्य




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