हरिवंश पुराण खण्ड - 2 | Harivansh Purana Khand-2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
493
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दो शब्द
*+>> ब्रज
“६०. हरिवश पुरागा. के दूसरे खण्ड मे मुख्य चार बड़े-बंडे उपाख्यान है।
(१) पद्यु स्त-्मरमावती-मायावती उपारयान, अनिरुद्धनठपा की कथा, पौड़क
का, हहड्डार और वध तथा हस डिम्मभक उपाख्यान। इन कथाओ से यह
,विदित होता है कि भगवान हृष्ण के नेतृत्व मे यदुवशियों ने कैसी प्रगति की
और अधिकाद अहद्धारी और युद्धलिप्छु राजाओं को हराकर साम्राज्यवादियों
५ ₹ मतसूबे नष्ट कर दिये | यद्यपि इन कथाओ को रोचकता की दृष्टि से बहुत
/ ब्रढा-चढ़ाकर वर्गान किया गया है, तो भी इनसे यह अवश्य अनुमान किया
जा सकता है कि उस काल मे हमारा द्वेश छोटे-बडे अनेक राजाओ के शास-
। नाधिकार मे विभाजित हो गया था श्रौर ये लोग प्राय अपनी महत्ता प्रकट
करने के लिए युद्ध छेडते रहते थे । इससे देश मे अशान्ति फैली रूती थी और
इसका सबसे अधिक कुफल साधारण जनता को ही भोगना पडता था ।
भगवान इृष्ण जैसे जन-तायक को यह अवस्था भ्रसहनीय प्रतीत हुई और
उन्होने छोटी अवस्था से ही आतताइयो के विधाश और सत्पुरुषो के सरक्षण
का सकल््प कर लिया | उन्होने अपना कार्य क्रम कस जंसे घोर महत्त्वावाक्षी
और क्र,र शासक के विरुद्ध विद्रोह करके आरम्भ किया ओर शीघ्र ही जरा+
सध जैसे भारत-सम्राट बनने का स्वप्न देखने वाले शासक की शक्ति को छिन-
भिन्न करके साम्राज्यवाद की जड पर कुठाराघात किया) इस सम्बन्ध में
उन्होने आय और अनाय॑ के बीच भी भेदभाव नही किया, क्योकि भत्याचारी
शासन चाहे गोरो का हो और चाहे कालो का, जनता के लिये तो वह झोपर
और दमन का पुरस्कार ही प्रदान कर सकता है। इसलिये थीहृष्ण ने जिस
प्रकार जरासघ, पौण्ड्क तथा हस डिम्भक ज॑से क्षत्रिय नरेशो की चहष्ढतां वा
प्रतिफल दिया बँसे ही दम्वरासुर, वाणासुर, वद्धनाम जैसे अनार नरेशों की
User Reviews
No Reviews | Add Yours...