सुश्रुतसंहिता शारीरस्थानम् | Sushrut Samhita Sharirasthanam

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Sushrut Samhita Sharirasthanam by भास्कर गोविन्द घाणेकर - Bhaskar Govind Ghanekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| खीरोग आर प्रसूतितन्‍्त्र ( 05 700०8ए 800 एाठेशांशऊ ), कौमारशृत्य (-2४४०8६००७ ) इत्यादि गहन विषय सूसरूप मे गागर मे सागर की भोंति भरे हुए हैं। इसलिए क्विरात् जी के उपर्युक्त मत वी ययाथता एक अश के लिए ही सीमित हो जाती है, सम्पूर्ण शारीर के लिंएं नहीं 1 मेरी अल्पबुद्धि के अतुसार पाश्चात्त्य वैज्ञानिक तुलनात्मक दृष्टि से सुथुवशारीरान्तर्गत सम्पूर्ण विषयों की जाँच पड़ताल करने पर भी उसकी नष्टता फी,अपेक्षा श्रेए्ता का ही परिचय मिलता है। यह मेरा मत फहों तक 'ठीक है, इसका निर्णय पाठकगण स्वय मेरे म्थ को पढ़कर कर सकते हैं। आयुर्वेदिक मन्धों मे सुशुतसहिता जैसा सर्वोत्तम है, बेसे द्वी बहुत सरल भी है) परन्तु इसके लिए शाटीरस्थान अपवाद हैं ! इसमें अनेक गहन विपय थोडे मे वर्णित होने के कारण बहुत कठितता आ गई है। परन्तु इस कठिनता मे मुझे पत्थरकोयले के कालपन का नहीं, हीरे की दीप्ति का अहुभब मिला | इसको मैंने प्रन्थ में विद्याधियों के लिए सुलभ करने का भरसक श्रयन्न किया है। मैं जानता हूँ कि यह मेरा प्रयते रिड्डी के पैर उठाफर आकाश को स्पर्श करने के साहस के समान या पृस की नाव पर चढ़कर महासायर को पार करने वाले नाबिक की द्विम्मत के समान, झा टिट॒हरी के चोंच मे भर भरकर नदी को सूखा बनाने की महस्वाकाज्ञा के समान हास्यास्पद है। तो भी जैसा हो सका, यह काम करके पाठकों के सामने रक्खा गया है। यह्‌ स्थान परम कठिन होने के कारण इसमे दोषों की कुछ शधिकता होना रकामाविक है तथा कई विपय विवादास्पद होने के फारण प्राचीन तथा अर्वाचीन आचायों के मत के साथ घोर विरोध प्रकट करना अनिवार्य हो गया है । ये दोप अन्थकार के अज्ञान फे और बिरोध पक्तपातह्दीन वैज्ञानिक दृष्टि के परिणाम हैं। तो भी विराध के लिए मैं उन आचार्यों से क्षमायाचना करता हूं और विद्वार्‌ चिकित्सकों और सहृदय पाठकों से नम्न निवेदन फरता हूँ कि आप लोग हस-स्षीस्‍न्यायेन दोषों की ओर दृष्टि न देकर शुण्णों को अहृण करें अर लेखक का साहस बढावें-- सत-हस गुण यहददिं पय, परिहरि वारि-विकार | काशी विश्वविद्यलम निषेदक विलयादरामी गोविन्द नि संदत्‌ १६९७ भास्कर गोविन्द घाणेकर




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