तीर्थंकर वर्द्धमान | Tirthankar Varddhaman

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Tirthankar Varddhaman by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ण । हावी रके जीवनुके फ्मिक विकासकी दुष्टिसे पहले भागकी सामग्री इस प्रकार दी गई हूँ कि गर्भसे छेकर मोक्ष तककी पुरी झाकी पाठकों को मिल जाती है 1 इसी तरह प्रवचनोका भी उन्होंने इस ढगसे ऋम और विभाजन किया हुं कि कोई भी प्रावश्यक विपय नहीं छूटने पाया हू । लेखककी योजना विशद्‌ है । इस मालाम वह कई पुस्तक निका- लनेके अभिलापी हूँ 1 पहला खण्ड तो पाठकोके सामने हूँ ही। दूसरे खण्डमें वह महावीर के जोवन-प्रसग रोचक झौर सजोव ढगसे देना चाहते हूं । तोसरे खण्डमे महावौर, बुद्ध और गाधोका तुलनात्मक अध्ययन उपस्थित करना चाहते है | वुद्ध श्रीर महावीर तो समकाछोन थे और जिस प्रकार महावीरने लोक-जीवनके आध्यात्मिक ह्तरको ऊचा उठानेका प्रयत्न किया, उसी प्रकार बुद्धने भी अपने ढगसे उस दिय्ञाप्रे महान्‌ कार्य किया । गाघीजी यद्यपि उस युगके नही हैँ तथापि उन्दोंने अपने जीवनकालम जिन सिद्धान्तोंका प्रतिपादन किया वे उसी यूगकी एक अ्रदूट कड़ी हैँ । मानलवकी पावनताके साथ-साथ गाधोजीने राजवीतिमें भो धर्मं-तीतिका प्रवेश करानेका जो भगीरथ प्रयत्न किया, हैं उनकी भारतको ही नहीं, समूचे विश्वको एक महान्‌ देन हूं । इसमे वह महावीरसे भी एक कदम आगे बढ गये दिखाई देते हे । उनकी सप्त महाद्रतोको व्याख्या भी गजवकी चीज हूं । निदचय ही यह हम सवका परम सौभाग्य हूं कि इस घरा पर हावीरका अवत्तरण हुआ । महापुरुष सहस्नों दपॉर्मे एक चार पैदा होते है, हेकिन जब पेदा होते है तो सस्तारको घन्य कर जाते हे । भगवान्‌ महावीर ऐसे ही महापुरुष थे । अपनी कठोर तपश्चर्या और हान्‌ व्यक्तित्वसे उन्होने विश्वके समक्ष एक ऐसा कल्याणकारी मार्भे




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