श्रीमद्वाल्मीकि - रामायण | Shrimadvalmiki - Ramayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-सूची किष्किन्धाकाणड प्रंथम से १-३० काम्ादीपन करने वाले रप्णीय परपातोसवर्ता चनप्रदेश : को देख कर, श्रोरामचद्ध ज्ञो का वहाँ क्की शोभा वर्णन करने के मिस अपने हृदयस्थ शेक्र के जद्मण के प्रति प्रक८ करना। लक्ष्मण जी के वनों से श्रीरामचन्ध जो का शोक कम होना और पम्पातठ से ऋष्यक्तक की प्रोर प्रस्थान । दूसरा से ३०-३६ '... मुप्रीष द्वारा ऋष्यघरूक पर्वत के समीप धूमते फिरते हुए रामलक्मण का देखा जाना | उनकी देख शोर भयभीत हो सुप्रोच का वानरों के साथ कथोपकथन | तद्नन्तर राम- लक्तमण के मन का भेद्‌ क्षेने के जिये मिज्ञुक के रूप में धनु- मान जो का, सुग्रीव की थाज्ञा से प्रस्थान । तीसरा सगे ३६-४६ प्रथम दसुमान जी का प्रशंसातूचक बचनों से ओराम- चन्द्र ज्ञी की स्तुति, पीछे यह कहना कि खुभीच धापके खाथ मित्रता करना चाहते हैं। हनुमान जी की लच्छेदार वातचीत सुन श्रीरामचन्द्र जो का विस्मित दोना ओर हनुमान जी की विद्यादुद्धि कौ बढ़ाई करना। लक्ष्मण का हलुप्तान ज्ञी से कहना कि, दम भी सुप्रोव के हृढ़ ही रहे थे ।




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