पार्श्व पुराण | Parshav Puran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दूसरा श्रधिकार । [ १७ दोहा । यो सुछर क्रीडा करें, बरुना-हुथिनी सत्य । बन निवसे बारसण' बली, मारण-सोल समत्थ ॥। १० 1॥ चीपई । एक दिवस श्ररविद नरेस। ज्यो विमानमे स्वर्ग सुरेत ॥। यो निजमहलन निवस स॒ृप। देख्यो बादल एक श्रतृप ॥११॥ तुर्गा सिखर श्रति उज्जल सहा। सानो संदिर ही बनि रहा ९ नर वे निरखि चित्तवें ताम । ऐसो ही करिये जिनधाम ॥1१२।। लिखन हेत कागद कर लयो। इतने सो सरूप सिटि गयौ ॥॥ तब भूषति उरकर विचार । जगतरीति सब श्रथिर श्रसार 1 १३। तन्न घन राज-संपदा सब्चे । यो ही विनसि जायमगोी श्रत्रे ॥ मोहमत्त प्रानी हठ गहे । श्रथिर वस्तुकों थिर सरदहै 11१४1 जो पररूप पदारथजात्ति । ते श्रपने माने दिनराति 11 भोगभाव सब दुखके हेत ॥ तिनहीकों जाने सुखखेत ॥१५॥ ज्यों माचे -कोदो परभाव । जाप जथारथ दिष्टि स्वभाव ।। समभे पुरुष श्रोरकी श्रोर । त्यों ही जगजीवनकी दौर 1१६॥ पुत्र कलन्न सित्रजन जेह्‌ । स्वारथ लगे सग्रे सब एह 1। सुपनसरूप सकल संभोग । निजहितहेत विलब न जोग 1१७। यो भुपति चेराग चिचारि। डारी पोट परिग्रह भारि ॥॥ राजसमाज पुत्नकों दियो । सुगुरुसाखि नुप चारित लियौ 1१८। घरो दिगंबरमुद्रा सार । फरे उचित श्राहार विहार | १८ हाथी २. समर्थ ३२,ऊचा ४ : १, हाथी २. समर्थ ३, कथा ४ राजा ५ उम्मत्त ६ एकपाम ५ जा अल्लीलयोन्‍मीमियलएलीसललननयर,




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