पार्श्व पुराण | Parshav Puran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा श्रधिकार । [ १७
दोहा ।
यो सुछर क्रीडा करें, बरुना-हुथिनी सत्य ।
बन निवसे बारसण' बली, मारण-सोल समत्थ ॥। १० 1॥
चीपई ।
एक दिवस श्ररविद नरेस। ज्यो विमानमे स्वर्ग सुरेत ॥।
यो निजमहलन निवस स॒ृप। देख्यो बादल एक श्रतृप ॥११॥
तुर्गा सिखर श्रति उज्जल सहा। सानो संदिर ही बनि रहा ९
नर वे निरखि चित्तवें ताम । ऐसो ही करिये जिनधाम ॥1१२।।
लिखन हेत कागद कर लयो। इतने सो सरूप सिटि गयौ ॥॥
तब भूषति उरकर विचार । जगतरीति सब श्रथिर श्रसार 1 १३।
तन्न घन राज-संपदा सब्चे । यो ही विनसि जायमगोी श्रत्रे ॥
मोहमत्त प्रानी हठ गहे । श्रथिर वस्तुकों थिर सरदहै 11१४1
जो पररूप पदारथजात्ति । ते श्रपने माने दिनराति 11
भोगभाव सब दुखके हेत ॥ तिनहीकों जाने सुखखेत ॥१५॥
ज्यों माचे -कोदो परभाव । जाप जथारथ दिष्टि स्वभाव ।।
समभे पुरुष श्रोरकी श्रोर । त्यों ही जगजीवनकी दौर 1१६॥
पुत्र कलन्न सित्रजन जेह् । स्वारथ लगे सग्रे सब एह 1।
सुपनसरूप सकल संभोग । निजहितहेत विलब न जोग 1१७।
यो भुपति चेराग चिचारि। डारी पोट परिग्रह भारि ॥॥
राजसमाज पुत्नकों दियो । सुगुरुसाखि नुप चारित लियौ 1१८।
घरो दिगंबरमुद्रा सार । फरे उचित श्राहार विहार |
१८ हाथी २. समर्थ ३२,ऊचा ४ : १, हाथी २. समर्थ ३, कथा ४ राजा ५ उम्मत्त ६ एकपाम ५ जा
अल्लीलयोन्मीमियलएलीसललननयर,
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