स्पन्दन | Spandan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17.87 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
ओंकार शरद - Omkar Sharad
No Information available about ओंकार शरद - Omkar Sharad
विश्वनाथ प्रसाद - Vishvanath Prasad
No Information available about विश्वनाथ प्रसाद - Vishvanath Prasad
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हे झाज का प्रोआम वहीं रहा । पर सरकार कुछ । हाँ हाँ रुपयों के लिए तो मैं हूँ ही । बस सरकार इतना ही सहारा दिए रहें तो फिर क्या दरवाजे पर मीना बाजार न लगा दूँ तो मेरा नाम नहीं । फिर लगभग छः बजे मंडली उठती ये सरकार भी उठते । अपने श्इंगार-सजाव से आठ बजे तक छुट्टी पा जाते । तब वही चॉढ़याँ (फिटन तेयार की जाती । सरकार अपने कुछ पटछुआ के साथ सवार होकर निकलत--उसी पूव-निस्थित प्रोग्राम के अनुसार । फिर आधो रात वीले एक बजे के लगभग सरकार को जब कुछ खुस्ती और रात के समय का ज्ञान होता तो यारों से कहते-- भाई अब कल पर रखो । और लचकदार सुदशेन छड़ी का सहारा लेकर वे चलते। चलन में उनके पाँव डग- मगाते । मानों इन सरकार के शरीर के साथ किये गए ऐश व आराम रूपी शिष्राचार का वे दो पाँव विरोध कर रहे हों । किसी _ का सहारा ले वे सीढ़ी उतरते । नीचे बग्घी खड़ी ही रहती । एक टॉग पावदान पर और एक नीचे रखकर वे पुनः एक वार सिर ऊपर की ओर उठाकर क्षण भर को ताकते अंतर एक तीखी सी चोभस्स समुसकान चेहरे भर पर थिरक उठती । और ऊपर सर भी कोई अपनी तिरछी नजरों को नचाकर एक ठंढी साँस के साथ भातर चली जाती । सरकार उसी अद्ध-निद्धित अवस्था में घर आते । थोड़ा चहुत खाते और फिर जो पलंग से लिपटते तो वद्दी आठ या नौ बजे घड़ी के बोलने पर आँखें मलते । अगड़ाई लेते । पिछले दिन और रात की खुमारी को खाट पर ही छोड़कर च्न्लि थे रानी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...