संस्कृत गद्य वीथी | Sanskrit Gadh Vithi

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Sanskrit Gadh Vithi by चन्द्रशेखर पांडे - Chandrashekhar Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संस्कृत गद्य का चिकास र्छ विष्वास 'कादम्बरी' में वाण की सौन्दय्यदर्णी दृष्टि पाकर सूं्तिभान्‌ प्रकट हुए हैं | बाण वर्णनात्मक जैली के घना है ! उनकी वाणी थकना या रुकना तही जावती | अपने वर्ण्य विषय को महिमा और सौन्दर्य से मण्डित करने में वह स्लेपों की झड़ी बाँव देंगे, विरोबाभास का तुमार खडा कर देंगे, हिलप्ट उपमाओं, अलुग्रासों और यमकों का जंगल ही लगा देंगे । इन बर्णनों से ने उकताकर, उनके भीतर पैठफ़र, हमे रसास्वादन करना चाहिए ---अकृपण कवि-प्रतिभा के औंदार्य का अवलोकन करना चाहिए; और तब बाण की सूक्ष्म निरीक्षण-शक्ति, उ्वंर कल्पना, प्रकृष्ठ प्रकृतति- प्रेम तथा अजस्र बाव्द-रा्ति हमें मल्त्र-मुर्थ किए बिना न रहेगी । परवर्ती गद्य-काव्यों पर वाण की छाप स्पष्ट दिखाई देती है ।* डसकी शैली का अनुकरण कवि-साफल्य का मापदण्द माना जाने लगा । १०बी शताब्दी की घनपाल की 'तिलकमज्जरी' तथा बादीमसिह की १. बाण का प्रभाव गोस्वामी तुलसीदास पर भी देखा जा सकता है । “रामचरितमसासस' में चन्द्रोदय का वर्णन करते हुए उन्होंने सिंह का उपसान दिया है--- पूरब दिसि गिरि गृहा निवासी । परम प्रताप तेज बल रासी 1 मत्त ताग तम कुम्भ विदारी | ससि केसरी गगन वतचारी 0 वियुरे सभ मुकुत्ताहल तारा। निम्ि सुन्दरी केर सिगारा 1 इसकी ठुलना दाण के इस वर्णन से करने पर कितनी समानता दिखाई देती है --शशिकेसरिविद्यर्यमाण तम करिकुम्भसम्मवेन मुक्ताफल- क्षोदेनेद घबलतामुपनीयमानसुदयगिरिसिद्धसुन्दरीकुचच्चुतेव चन्दनचूर्ण- शशिवेव पाण्युरीक्रियमाणम्‌ । ठुलसोदासजी चे--- ल्‍ जहेँ बिलोकि मृगसावक तयदी । जनु तह वरसि कमल सित स्यनी ॥ लिखकर जो सुन्दर उत्प्रे्षा की है, वह बहुत पहले वाण में हढ़ी जा सकती है---अपाज विश्षेपश्वलितकूवलबवनमयीमिव क्रियमाणामवनीम ।




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