श्री ज्ञाताधर्म कथांग सूत्रम | Shri Gnatadharma Kathanga Sootram

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Shri Gnatadharma Kathanga Sootram by मुनि कन्हैयालाल - Muni Kanhaiyalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनगारघर्मासतदरपिणी शी० झ० १४ सेतलिपुत्रप्रधानवरितवर्णनम्‌ श्र €--+------फफमलऊपफफभ्नभ भा भनमनन भा न नस्भनननतनननल्सत्तनननससननसतततलन लत नननलत्ल्त्तल्नतलल्त्न्त्ल्ल ग़ंत्वा तानगरे कुत्ा स्व॒यम्‌ 'अणुगचछ३! अन्लुगच्छति, तेषां पृष्ठवर्ती मूत्वा गच्छति, अन्ुुगम्य, आसनेन उपनिमन्त्रयतिसःआसनदानिनः तान्‌ पुरुपानुपवेशयति, उपनि- मन्त्य, आस्वस्य/, विस्व॒प्यः एतेषामसात्यपुरुषाणां सत्कारों यथावज्जात इति हेतोः. स्वस्थमनाः भत्ता सुखासनवस्णत/-रव्रयमपि स्वक्ीयासने खुखोपविष्ठः सन्‌ एयमबदत-संदिशम्तु खल दे देवानुत्रिया।! सवतां किमागमसनप्रयोजनम्‌ १ ततर खल ते आश्यन्तरस्थानीयाः पुरुषाः कलाद मूपीकारदारकप्‌ एयमवदन-चर्य खल॒ देचाबुधिय ! तब दुद्वितरं भद्राया आत्मजां पोट्डिलां दारिकां तेतलिपुत्रस्य भार्यात्वेन हशुमः, तर यदि खल॒ स॑ ' जाणपि ? जानासिल्‍भन्यसे, हे देवातुपरिय यद्‌ अस्पाकमेतचत्कन्याविषयर्क याचने * जुच वा ' युक्त वारउचितम्‌ “पत्तं वा * भाप वा सनसिसंछमे वा ' सलाहणिज्ज वा” कछाथनीय पान्प्रशंसनीय वा अपि च 'सरिसो वा संजोगो' सहशो वा संयोगः तेतलिपुओेग सह तब कन्याया वेदाहिकः कर,फ्िर चह सात आठ डग प्रमाण आगे उन का सत्कार करने के लिये गया। वहां से उन्हें आगेकर के चह स्वर्थ उनके पीछे २ आया। आकर के फिर उसने उन्हें आसनों पर बैठाया-बैठा कर आश्वस्त विशखस्त होकर बाद में चह स्वयं दूसरे अपने आशन पर इमन्ति पूर्वक बैठ गया । बेठ जाने के बाद फिर उसने इस प्रकार कहा- हे देवालुप्रि- थो | कहिये-किस कारण से आप यहां पधारे हैं-आपलोगों के आने का क्या प्रयोजन है-इस प्रकार उसके पूछने पर उन अभ्यन्तर स्थानीय पुरुषों ने उस खुबर्णकार के पुत्र कलाद से इस प्रकार कहा ( अम्हे रण देवाणुप्पिया | त्व धूये भद्दाए अष्त्य पोहिलं दारियं, तेयलिएत्तस्स 'भारियत्ताए परेमी, ते जइणं जाणसि देवाणुप्पिया! जुत्त था पत्तं:वा सलाइणिज्न वा सरिसो वा सेजोगो ता दिल्ल उणं पोद्िला दारिया तेपलि- छेल्षे। थर्ध ने तेमना स्वागत सारे सात जा पणक्षां साथे जय, त्यांथी वेश नाषदाराणाने जाणण उरीने अरते 3 चेते तेजेनी पछण पाछण -याक्षपे। त्वो स्माण्ये। खने जापीने तेशु पेनमाने नयासने। ठ5पर जेसाडया, त्वारपछी साखर्त विश्वस्त थर्ध ने पे पाते जीव्त जासन 6पर शांतिपूष॑5 जेशी जये!, णैयीने ते तेज विनय भूष ५ 3चु हे छे बेषाइजिये। ! जाले।, तभे शा आरणशुथी न्यहीं खान्या छा ? तमे शा भ्येत्टवथी जाव्या छे। ? जा रीपे इकाई ( झु१- शु5२ ) नी बात सांथणीने ते जाब्य'तर स्थानीय घइघेे तेने जया अभाएे इच्चु है ( अम्हेण देवाशुणिया ! तब धू्य सदाएं अत्तयं पोहिल दारिये तेयलि पुत्तस्स भारियत्ताएं परेमो, ते जह जापसि देवायुप्पिय | जुत्त वा पतत वा सलाइणिज्ज




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