प्रमाण नय तत्वालोक | Praman Nay Tatwalok
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ग्रन्थकार का परिचय
श्री देवसूरि गुजरदेश के 'मद्दाद्मत! नामक नगर में उत्पन्न
थे । पोरवाल नामक बचैश्य जाति के भूषण थे। उनके पिता 'बीरन,
और माता 'निनदेवो? थी। श्री देवसूरि का पूर्व नाम! पर्णेचन्द्र थ
बवि० सं० ११४३ में इनका जन्म हुआ था। ब्ि> स> ११५२,
उन्होने बृहत्तपगच्छीय यशोभसद्र नमिचन्द्र सूरि के पद्दालझ्लार
श्र ५ च्प
मुनिचन्द्र सूरिजी के पास दीक्षा अज्ञीकार की थी । प्रशेचन्द्र न «
ही समय में अनेक शाञ्यों का अध्ययन कर लिया। गुरुजी ने इनः
वादशक्ति से संतुष्ट होकर बि० स० ११७४ में वेवसूरि' एसा न
संस्करण करके आचार्य पद प्रदान क्रिया । बि० सं० ११७८ कार्ति
कृष्णा में गुरुजी का स्वर्गंवास हो जाने के बाद श्री देवसरि |
गुजरात, मारवाड, मेवाड आदि देशों मे विचरण करके धर्म-प्रचा
किया और नागौर के राजा आहलाइन, पाटन के प्रतापी यु
सिद्धराज जयसिंह तथा गुजरेश्रर कुमारपाल आदि को धर्मानुराग
बनाया था ।
श्री देवसूरिजी की वादशक्ति बहुत ही विलक्षण थी ।
से विवादों में उन्होंने विजयलक्ष्मी प्राप्त की थी। कहा जाता हैं
पाटन में सिद्धराज जयसिंह नामक राजा की अध्यत्षता में 1
दिगम्व॒राचाय श्री कुमुदचन्द्र के साथ स्त्री मुक्ति, केवलिभुक्ति और
सबश्सुक्ति' के विषय मे सोलह दिन तक वादविवाद हुआ था और
उसमें भी विजय प्राप्त करके वाद्देवसूरिजी ने अपनी प्रखर ताकिक
_& का परिचय दिया था।
भर
श्री वादिवेवसूरि जैसे तार्किक थे बैसे ही प्रोढ लेखक भी ।
उन्होने प्रस्तुत अन्थ को विशद करने के लिये 'स्पाह्वावरबाकर” नामक
चहत् स्वोपज्ञ भाष्य लिख कर अपनी तार्किकता का सुन्दर परिचय
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