पूज्यश्री जवाहरलाल जी की जीवनी भाग - 1 | Pujya Shri Jawaharalalji Ki Jeevani Bhag - 1

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Pujya Shri Jawaharalalji Ki Jeevani Bhag - 1 by शोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री वीतरागाय नमः प्रस्तावना ( लेखक :--श्री कुल्दुनमलजी फिरोदिया, अध्यक्ष बंबई-धारासभा ) स्वर्गस्थ पूञ्यश्री जवाहरलालजी महाराज के चरिक्न-प्रंथ की प्रस्तावना लिखने का मुझे अवसर दिया गप्रा इसलिए चरित्र-समिति का में प्रथम आभार मानता हूँ। पूज्यश्री का स्वगे- चास हुआ तब मैं सन्‌ १६४२ के आन्दोलन के सबब से कारावास में था। कुछ दिनों के बाद मुझे वषा एक पत्र भी मिला कि मेँ पूज्यश्री कै वारे मे, मेरी जो स्रतिग्रां हा, वह ज्िख मेन्‌ । कारावास में होने के सत्रब में लिखने में अलमर्थ था । इसका मुझे दुःख होता रहा । प्रस्तावना ज्िखने का मुके मौका मिला यद में अपना अहोभाग्य सममता हूँ । पूज्यश्नो के चरणारविन्द में श्रद्धांजलि अर्पित ' करने का मेरा पत्रित्र- कर्तव्य है । यह कार मेंने बढ़े हर्ष से स्वीकार कर लिया। पूर्परभ्नी कै प्रथम दुशंन का लाभ सुक तव मिला जव पूज्यश्नी दत्तिण प्रान्त से पधारे श्रोर श्रहमद्नगर शहर में दी श्रापका दरि का प्रथम चातुर्मा संवत्‌ १६६८ मं हुश्रा । मेवाड मालवा चोदकर पूजयश्री दिण में पधारे तद्र इ किंचित्‌ व्यधित अन्तःकरण से ही पधारे थे । रतलाम सैन ट्रेनिंग कालेज के कुछ विद्यार्थियों ने दीक्षा लेने का निश्चय करके कालेज छोड़ दिया, डसका श्रारोप पूज्यश्री पर कालेज के उस वक्त के कार्यवाहक और “जैन हितेच्छु” पन्न के सम्पादक श्री वाडीलाल मोतीलाल शाह ने क्गाया था| पूज्यश्नी को इसका बढ़ा दुःख होता था। : . पृञ्यश्नी हमेशा कहते थे कि तीर्थकरों की आज्ञा में रहकर उपदेश और आदेश का पूरा खयाल रखकर में साघु-जीवन व्यतीत करता हूँ। हसी चाठुर्मास में दक्षिण के नेता शास्त्र-चेत्ता श्रीमान्‌. बालमुङन्दजी सदिव सुया और श्रोमान्‌ चाडीलालजो श्रहमदनगर पधारे । पूज्यश्री से रूबरू बात होने पर और पूञयश्रौ का उपदेश और श्रादेश का शास्त्र-शुद्ध विवरण सुनने से ध्रास्म-साक्षी




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