प्रमाण नय तत्वालोक | Praman Nay Tatwalok

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Praman Nay Tatwalok by शोभाचन्द्र भारिल्ल - Shobha Chandra Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ख] ग्रन्थकार का परिचय श्री देवसूरि गुजरदेश के 'मद्दाद्मत! नामक नगर में उत्पन्न थे । पोरवाल नामक बचैश्य जाति के भूषण थे। उनके पिता 'बीरन, और माता 'निनदेवो? थी। श्री देवसूरि का पूर्व नाम! पर्णेचन्द्र थ बवि० सं० ११४३ में इनका जन्म हुआ था। ब्ि> स> ११५२, उन्होने बृहत्तपगच्छीय यशोभसद्र नमिचन्द्र सूरि के पद्दालझ्लार श्र ५ च्प मुनिचन्द्र सूरिजी के पास दीक्षा अज्ञीकार की थी । प्रशेचन्द्र न « ही समय में अनेक शाञ्यों का अध्ययन कर लिया। गुरुजी ने इनः वादशक्ति से संतुष्ट होकर बि० स० ११७४ में वेवसूरि' एसा न संस्करण करके आचार्य पद प्रदान क्रिया । बि० सं० ११७८ कार्ति कृष्णा में गुरुजी का स्वर्गंवास हो जाने के बाद श्री देवसरि | गुजरात, मारवाड, मेवाड आदि देशों मे विचरण करके धर्म-प्रचा किया और नागौर के राजा आहलाइन, पाटन के प्रतापी यु सिद्धराज जयसिंह तथा गुजरेश्रर कुमारपाल आदि को धर्मानुराग बनाया था । श्री देवसूरिजी की वादशक्ति बहुत ही विलक्षण थी । से विवादों में उन्होंने विजयलक्ष्मी प्राप्त की थी। कहा जाता हैं पाटन में सिद्धराज जयसिंह नामक राजा की अध्यत्षता में 1 दिगम्व॒राचाय श्री कुमुदचन्द्र के साथ स्त्री मुक्ति, केवलिभुक्ति और सबश्सुक्ति' के विषय मे सोलह दिन तक वादविवाद हुआ था और उसमें भी विजय प्राप्त करके वाद्देवसूरिजी ने अपनी प्रखर ताकिक _& का परिचय दिया था। भर श्री वादिवेवसूरि जैसे तार्किक थे बैसे ही प्रोढ लेखक भी । उन्होने प्रस्तुत अन्थ को विशद करने के लिये 'स्पाह्वावरबाकर” नामक चहत्‌ स्वोपज्ञ भाष्य लिख कर अपनी तार्किकता का सुन्दर परिचय




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