राजस्थानी व्रतकथाएँ | Rajasthani Vratkathyen

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Rajasthani Vratkathyen  by मोहनलाल पुरोहित - Mohanlal Purohit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ 9) काई न छे । सो आज महेँ राज रो दरसण पायो छे सो माहरो निसतारी आज थे करो | रहें बहुत राजी हुआ। म्हानू' सुख हुवो | काया म्हारी बब्ठती थी, सो सुख हुवी । मांहरी मत भली हुई छे । म्हनू” सारी खबर पडण दूक गईं। सी ब्राह्मण परमेश्वर छे, ने महें भलाई दरसण थांहरो पायो। सो म्हांरो उद्धार हुसी। तरे ब्राह्मण बोलियो-थ किसा पाप कीघा, तिण सू' थे प्रेत जोन पाई, सो थे बताबी । तरे पहलो प्रेत बोलियौ, म्हें पंचा देशमें पूव जन्म त्राह्मण मारियों, एक ब्राह्मण री हित्या लागी, तिण सू प्रेत जोनि पाईं। पे दूसरौ प्रेत बोलियो, म्हें गुरू मारियों थी सो गुरू-ह॒त्या लागी, तिण सू' प्रेत जोनि पाईं। पछे तीसरी श्रेत बोलियो-हूँ पारकी निद्या हीज करतो, कूडहीज बोलतौ, कूडा कल्लंक देतो, कूड़ी साख भरतो, लोकांरो मन भांजतो, सो तिण पाप थी जोनि प्रेतरी पाईं। पछे चोथो प्रेत बोलियो, हूं गुरूणी हमने श्रापके दर्शन लाभ किए हैं झ्रत: हमारी मुक्ति आप करें । हमें ( आपके दर्शनों से ) बड़ी खुशी हुई | हमें बहुत सुख हुआ । हमारी भ्रात्मा जल रही थी, उसे सुख मिला । हमारी बुद्धि स्वच्छ हुई । हमें सब प्रकार का ज्ञान होने लगा है। आप ब्राह्मण परमेश्वर का खूप हैं हमारा सौभाग्य है जो हमने झ्रापके दर्शन किए। अतः हमारा ( अरब ) उद्धार होगा । ब्राह्मण तब बोला--आपने कौन से पाप किए थे, जिससे प्रेत योनि श्रापने प्राप्त की; वह मुझे बतावें । तब पहला प्रेत बोला-मैंने पंचाल देश में पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण को मारा था- एक ब्राह्मण की हत्या मुझे लगी,उसी कारण प्रेत योनि मुझे प्राप्त हुई | पीछे दूसरा प्रेत बोला- मैंने गुरू को मारा था, सो गुरु हत्या मुझे लगी, उसी कारण प्रेत योनि प्रात्त हो सकी । फिर तीसरा प्रेत बोला-मैं दूसरे व्यक्तियों की निन्‍दा ही किया करता था, भ्ूंठ बोला करता था, भरूठे कलंक दिया करता, कूठी




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