राजविद्या | Rajvidya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
446
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आधुनिक विशान और सन्तातनधर्म । १७
असर शक रध5र ११ वध मपरभ न... 4५७४०५५२४ टच भरीप टच नम वध रन्धनध डी. न्घ्ट+ 3. 2फहरन्+ अभ्टीणर फल 2ब्ज हट 2५७५ ०५८३ 3५ 75३३३ ३८०३ न प८७#2तरतथतथ..3. 3७.3 ऑधर रास ज जी चल
हो जाता है, जिससे अकाल रुत्यु, अति कष्टप्रद मृत्यु आदि सभी दुःख जीवकों
प्राप्त होते हैं--येही सब विपयस्ुखके साथ अवश्य भोक्तव्य परिणामदुश्ख है ।
भोगदशार्स समभोगी या अधिकमोगीको देखकर ईपांदिधार महान तापडुश्ज
भोगीको प्राप्त होता है। और अन्तम भोगमे असक्त वृद्धावस्थामें सोग्यवस्तुओंका
स्मरण करके सस्कारदुश्ख होता है । इस प्रकारसे विषयसखुखके साथ परिणाम
दुःख, तापदुःख तथा सह्कारदुःखका नित्य सस्वन्ध होनेसे विचारवान पुरुषणण
विपयखुखको दुःखरूप ही समझते है। जब राजसिक विषयखुखके साथ ही इतना
है तो उसके तामसिक हो जाने पर प्रमाद, मोह आदि ठारा विषयसुख कितना
डुश्खपद होगा इसका चणन नहीं हो सकता है । टद्वितीयतः केवल इहजन्ममें
ही विपषयसुखसहचर डुःखकी समाधि नहीं होती है । उसका संहकार
कर्मांशयमें एकन्रित होकर झृत्युके समय, झुत्युके अनन्तर प्रेतादियोनि, तथा
नरकादिमे पुनः पुनः जन्म मरणमें जीवके लिये अशेष दुःखका कारण बनता
है। आजीवन सेघिन विपयकों जीच झत्युके समय छोड नहीं सकता है,
किन्तु भोगसे तृप्ति होनेसे पहिले ही काल जीवनतेरुका छेदन कर देता है,
अतृप्त विषयी अत्यन्त डुश्खके साथ संसारको छोडकर परलोकर्म जाता है,
बिपयके उन्मदमे अल्लष्टित अश्चर्माच्ररणोंकों स्मरण करके अनुतापके अनल्मे
दग्ध होने लगता है, वासनाके केन्द्र ख्री पुश्रपरिवारोको सामने विछाप करते
हुए देखकर उसका प्राण फठता है और इस प्रकारसे विषयमुग्ध होकर मरनेसे
निश्चय ही जीवकों मरणानन्तर प्रेतयोनि प्राप्त होती है । प्रेतयोनिमें वासना-
विद्ग्ध जीवको दारुणडुश्ख भोगना पड़ता है, उसको छणभमरके लिये भी उस
योनिर्म शान्ति नहीं मिलती है, वासना हृदयमे बलवती रहनेपर भी उसके
भोगनेमे अरूमर्थताके कारण प्रेतके हृदयमे अशान्तिकी अग्नि सदा ही जलती
रहती है, इत्यादि इत्यादि अनेक दुश्ख भोगके बाद अर्थकामपरायण जीवकों
पूर्व असत्कर्माछसार नरकलछोकमे भी अनेक प्रकारके कष्ट भोगने पडते है ।
सैर, कुम्मीपाक, असिंपन्रवन आदि नरकोंका दुःख शास्त्रम असिद्ध ही है।
उसमे सीपण कष्ट पानेके बाद पुनः माठगर्भम प्रविष्ट होकर दस मद्दीने तक
जीवको अनेक फट भोगने पड़ते हैं । तदनन्तर गर्भसे निकलनेके समय
अनेक कष्ट पाकर पूर्या मन््दकर्माल्ुसार हीन योनियोम जीवका जन्म होता है।
अल्यायरूपसे अर्थोपार्जनकारी दरिंडके धरमें उत्पन्न होकर आजीदन डुः/ख
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