नव प्रभात | Nav Prabhat

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Nav Prabhat by विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जब-पध्रमात रण (इृर जय-धोप उठता है। उठता रहता है ।) सवरपोष मगप-सम्राद फी ऊप ! सम्नाट प्रशोक को झय ! रैवा घायल गुमार पगड सिये गए हैं। सपघसित्रा (सहधा फॉपकर) बुमार पकड सिये गए हैं ? गया सच बुमार पबड़ सिय गये ? घलो रेया ' असो। महा माए्प स पूछें गि बया सथ् पुमार पकड़ सिये गए हैं ? (घोलती-बोसतो इतनो धी समता से शगमच से बाहर जाती है हि रेवा चशित रह जातो है प्ौर उसे पुरारतों हुई पोछन्पीछ बोइतो है +) रेया देपि देयपि' (पहुसा एक जातो है) बुमार गे पगड़े जाने गो वात गुनकर देवी सघमित्रा वितमी उनसित हो उठी हैं। घन्ु हा जाने पर भी गुमार वे प्रति बनवा प्रेम कम मही हुपा है। (निवास) प्रेम भी बिसना प्रदुमुत कितनी पयित्र माबमा है। सब लाध प्रेम ही बर्यो मही बरने लगते (एए दस देएब र) प्रोएट ! पुमारी फ्से भागो जा रहो हैं ? चसू में भा देखू (वह भो जातो है घोर दर्णलक सानाट ब॑ बाद छपुपवतिगा पिर णातो है) शंदमप पर प्रष्दुत बरते हुए समद वो बनी हा हो जास्टोरिक वो ऐड रा सरता है।




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