उत्तरज्झयणाणि | Uttarajjhayanani

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Uttarajjhayanani by आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्ययन-विषयानुक्रम ग्‌ रा ३८५,३६---सत्कार-पुरस्कार-परीपह । ४०,४१--प्रज्ञा-परीपह । ४२,४३--अज्ञान-परी पह । ४४,४५--दर्शन-परीपह । ४६--परीपहों को समभाध ग्रे सहने का उपदेधा । 'हंद्तीय अध्ययन : चतुरंगीय ( चार दुल्भ अंगों का आख्यान ) पृ० ३७-४६ १--दुर्ढम करगों का नाम-निर्देदा । « २-७--मनुप्यत्व-प्राप्ति की दुर्लभता । ८घ--घधर्म-श्रवण की दु्लेमता । कफ &--श्रद्धा की दुर्लमता । १०--वीर्य की दुर्लभता । ११--दुलेभ अगों की प्राप्ति से फर्म-मुक्त होने की सभवता | १२--घमं-स्थिति का आधार । १६--र्म-हेतुओं फो दूर करने से ऊर्घ्व दिएा फी प्राप्ति । १४-१६-- थील की आराधना से देवलोकों की प्राप्ति । हाँ से च्यूत होकर उच्च व समृद्ध कुलों में जन्म और फिर विशुद्ध धोषि का लाभ । २०--दु््ंभ अगों के स्वीकार से सर्वे कर्मा धा-मुक्तता । चतुर्थ अध्ययन : असंस्कृत (जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण का प्रतिपादन ) पृ० ४७-४४ १--णीवन की धसस्कृतता और अ्रप्रमाद फा उपदेधा । २--पाप-क्रम॑ से धन-भर्जन के ध्रनिष्ट परिणाम । ३--क्रत कर्मों का क्षवदयभावी ५रिणाम । ४--कर्मों की फल-प्राप्ति में पर की असमर्थता । प--घन की अन्रानता कौर उसके व्यामोह से दिग्मूहता । ६--भारण्ठ पक्षी के उपमान से क्षण भर प्रमाद न फरने का उपदेदा । ०० ७--गुणोपलूव्बि तक घरीर-पोषण का विघान, फिर अनदान का उपदेदा । ८--छन्द-निरोध से मोक्ष की सभवता । ६--भाश्वत-वाद का निरसन । १०--विवेक-जागरण के लिए एक क्षण भी न खोने का आह्वान । ११,१२--श्रमण के लिए अनुकूल और प्रतिकूल परीपहों फो समभाव से सहने का निर्देदा । १३--जीवन को शाइवत मानने वालों का निरसन और छशारीर-भेद तक गृणा राधना का आदेथ । पंचम अध्ययन । अकाम-मरणीय (मरण के प्रकार और स्परूप-विधान ) पृ० ४४-७२ इलोक १,२--श्रध्ययन का उपक्रम और मरण के प्रकारों फा नाम-निर्देश । ४--मरण का काल-निर्धोरण । ४-७--फामासक्त व्यक्ति हारा मिथ्या-भापषण का आश्रय ।




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