उत्तरज्झयणाणि | Uttarajjhayanani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
666
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्ययन-विषयानुक्रम ग् रा
३८५,३६---सत्कार-पुरस्कार-परीपह ।
४०,४१--प्रज्ञा-परीपह ।
४२,४३--अज्ञान-परी पह ।
४४,४५--दर्शन-परीपह ।
४६--परीपहों को समभाध ग्रे सहने का उपदेधा ।
'हंद्तीय अध्ययन : चतुरंगीय ( चार दुल्भ अंगों का आख्यान ) पृ० ३७-४६
१--दुर्ढम करगों का नाम-निर्देदा ।
« २-७--मनुप्यत्व-प्राप्ति की दुर्लभता ।
८घ--घधर्म-श्रवण की दु्लेमता ।
कफ &--श्रद्धा की दुर्लमता ।
१०--वीर्य की दुर्लभता ।
११--दुलेभ अगों की प्राप्ति से फर्म-मुक्त होने की सभवता |
१२--घमं-स्थिति का आधार ।
१६--र्म-हेतुओं फो दूर करने से ऊर्घ्व दिएा फी प्राप्ति ।
१४-१६-- थील की आराधना से देवलोकों की प्राप्ति । हाँ से च्यूत होकर उच्च व समृद्ध कुलों में जन्म और फिर विशुद्ध धोषि
का लाभ ।
२०--दु््ंभ अगों के स्वीकार से सर्वे कर्मा धा-मुक्तता ।
चतुर्थ अध्ययन : असंस्कृत (जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण का प्रतिपादन ) पृ० ४७-४४
१--णीवन की धसस्कृतता और अ्रप्रमाद फा उपदेधा ।
२--पाप-क्रम॑ से धन-भर्जन के ध्रनिष्ट परिणाम ।
३--क्रत कर्मों का क्षवदयभावी ५रिणाम ।
४--कर्मों की फल-प्राप्ति में पर की असमर्थता ।
प--घन की अन्रानता कौर उसके व्यामोह से दिग्मूहता ।
६--भारण्ठ पक्षी के उपमान से क्षण भर प्रमाद न फरने का उपदेदा ।
०० ७--गुणोपलूव्बि तक घरीर-पोषण का विघान, फिर अनदान का उपदेदा ।
८--छन्द-निरोध से मोक्ष की सभवता ।
६--भाश्वत-वाद का निरसन ।
१०--विवेक-जागरण के लिए एक क्षण भी न खोने का आह्वान ।
११,१२--श्रमण के लिए अनुकूल और प्रतिकूल परीपहों फो समभाव से सहने का निर्देदा ।
१३--जीवन को शाइवत मानने वालों का निरसन और छशारीर-भेद तक गृणा राधना का आदेथ ।
पंचम अध्ययन । अकाम-मरणीय (मरण के प्रकार और स्परूप-विधान ) पृ० ४४-७२
इलोक १,२--श्रध्ययन का उपक्रम और मरण के प्रकारों फा नाम-निर्देश ।
४--मरण का काल-निर्धोरण ।
४-७--फामासक्त व्यक्ति हारा मिथ्या-भापषण का आश्रय ।
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