कथा कोश प्रकरण | Katha Kosh Prakaran

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Katha Kosh Prakaran by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muniबहादुर सिंह जी - Bahadur Singh Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रास्ताविक वक्तव्य 8१५ तने अँश्में ऐेहिक और पासमार्थिक दोनों दृष्टिसे सुख और शान्तिफा भोक्ता चनता है । जिसके आत्मामें इन शुर्णोका चरम विकास हो जाता है वह मनुष्य सर्वकर्म विमुक्त वन जाता है और संसारके सर्व प्रकारके इंडोंसे परपार हो जाता है। जेंसे व्यक्तिके जीवनविकासके छिये यह घर्म आद्शेभूत है बेसे ही अन्यान्य समराजके छिये और समूचे मानव समृदक्के लिये भी यह धर्म आदर्शभूत है । इससे बढ कर, न कोई धर्मशाल्न ओर न कोई नीतिसिद्धान्त, मलुप्यकी ऐदिक सुस-शान्तिका और आध्यात्मिक उन्नतिका अन्य कोई श्रेष्ठ धर्ममागे बतछा सका है | जैन कथाफारोंने सदू्धर्म और सनन्‍्मार्गके जो ये ४ प्रकार बतछाये हे वे संसारके सभी मनुप्योका, सदा, कस्याण करनेयलि हैँ इसमें कोई शंका नहीं है । चाहे परछोककों फोई माने या नहीं, चाद्दे खगे और नरकको कोई माने या नहीं; चाहे पुण्य और पाप जैसा कोई शुभ अज्लुभ कर्म और उसका अच्छा या घुरा फछ दोनेवाल्य दो या नहीं; लेकिन यह चतुर्विध धर्म, इसके पाठन करनेवाले मलुप्य या सदुुध्यसमाजके जीवनको, निश्चित रूपसे सुसी, संस्कारी ओर सत्कर्मी बता सकता है इसमें कोई सन्देह नहीं है । संसारके भिन्न भिद्रा धर्मोनि ओर भिन्न भिन्न नीतिमार्गोने एट्विक और पारलौफिर सुगशान्तिके लिये जितने भी धार्मिक और नेतिक विचार प्रकट किये हे ओर जितने भी आद्शेभूत उपाय प्रदान किये हैं, उन सबसें, इन जेन कथाकारोंके बतठाये हुए इन ४ सर्वोचग, सरछ और सुग्रस धार्मिक गुणोसि घढ़ कर, अन्य कोई धार्मिक गुण, सनातन ओर सार्वभोम पद पानेकी योग्यता नहीं रखते । ये ग्रुण सार्वभोम इसलिये हूँ कि इनका पान संसारका हर कोई व्यक्ति, विना क्रिसी धर्म, संप्रदाय, संत या पक्षके पन्‍्धनके एवं बाघाफे कर सकता है । ये गुण किसी धर्म, मत, संप्रदाय था पक्षका फोई संकेतचिन्द नहीं रखते । चाहे क्रिसी देशमें, चादे किसी जातिमें, चाहे फ्रिसी धर्ममें भीर चाहे किसी पक्षसें-एवं चाहे किसी खितिमें रह कर भी, मनुष्य इन चतुर्विध गुणोंका यथाश्ञक्ति पालन कर सकता है. और इनके द्वारा इसी जन्ममें, परम सु्र ओर शान्ति प्राप्त कर सकता है । सनातन इसलिये दूँ. कि संघारमें कभी भी कोई ऐसी परिश्लिति नहीं उत्पन्न हो सकती, कि जिस इन गुणोंका पालन मलुष्यफे लिये अहितकर दो सऊता हो या अशक्‍्य दो सफता हो । यह है इन जैन कथा ग्रन्थोंका भ्रेछतम नेतिक महत्त्व । इसी तरह, सांस्कृतिक महृ्त्वकी दृष्टिसे भी इन कथाप्रन्थोंका वसा ही बहुत उच्चतम स्थान है । भारत बर्षफे, पिछछे ढाई जार वर्षके सांस्कृतिक इतिद्वासका सुरेय चित्रपट अंकित करनेमें, मिननी विश्वस्त और विस्तृद उपादान सामग्री, इन कथाग्रन्थोंमेंसे मिठ्ठ सकती है उतनी अन्य फ्रिसी प्रकारके साहित्यममेंसे नहीं मिल सकती | इन कथाओं भारत भिन्न मिन्न धर्म, संप्रदाय, राष्ट्र, समाज, वर्ण आदिके विविध कोटिके भनुष्योंके,' नाना प्रकारके आचार, विचार, व्यवद्ार, सिद्धान्त, आदण, शिक्षण, संस्कार, नीति, रीति, जीवनपद्धति, राज़तंत्र, वाणिज्य-व्यवसाय, अरथॉपालैन, समाजसंगठन, धर्मोन्रष्ठान एवं आत्मसाधन आदिके निद्शेक चहुविध वर्णन निषद्ध छिये हुए हैं. जिनके आधारसे दम प्राचीन भारतके सांस्कृतिक इतिहासका सर्वागीण और सर्वतो* मुस्ती मानचित्र तेयार कर सकते है | लर्मनीके ओ. हर्देल, विण्टरनित्स, टॉयमान आदि भारतीय दिया - संस्कृतिके प्रसर पण्डितोंने, लेन कथासादित्यके इस मद्दत्त्वका मूल्यांऊन बहुत पहले ही कर लिया था और उन्होंने इस विपयमे झितना ही मार्गेद्शक संशझोघपन, अन्वेषण, समाछोचन भौर संपादन आदिफा उत्तम काये भी कर दिखाया था; लेकिन दु्ाग्यसे झद्ो या सशानसे हुद्दो, हमारे मारदबर्षफे विद्वानोंका दस विषय ओर जभीतक स्थूछ दृष्टिपाव भी नरदीं दो रहा




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