सिंघी जैन ग्रंथमाला | Singhi Jain Granthmala

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Singhi Jain Granthmala  by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muniबहादुर सिंह जी - Bahadur Singh Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जैन आगमिक, दाशेनिक, साहित्यिक, ऐतिहासिक, कथात्मक-वत्यादि विविधविपयगुम्फित्त प्राकृत, संस्कृत, अपभ्षेश, प्राचीनगुर्ज्‌र, राजस्थानी आदि भाषानिचद्ध बहु उपयुक्त पुरातनवाद्म॒य तथा नवीन संशोधनात्मक साहित्यप्रकाशिनी जेन ग्रंथावलि । ३ पुण्य कलकत्तानिवासी सवगस्थ श्रीसद्‌ डालचन्दजी सिघी की पुण्यस््वृतिनिमित्त हु बहा ३ सिधी | तससुपत्र श्रीसान्‌ बहादुरसिहजी सिंघी कदेक संखथापित तथा प्रकाशित | --8५8-- सम्प्द्क तथा सश्चुत्तक /:५ / ५ बेजय जिनविजय मुनि | सम्मान्य समासद-भाण्डारकर ग्राच्यविद्या संशोधन मंदिर पूना, तथा गुजरात साहित्व- सभा अहमदाबाद; भूतपूर्वांचार्य-गूजरात पुरातत्वमन्दिर अहमदाबाद; जैन वाडमयाध्यापक विश्रभारती, शान्तिनिकेतन; संस्कृत, आकृत, पाली, प्राचीनगूजर आदि अनेकानेक ग्रन्थ सेशोधक-समस्पादक | | ग्रन्थांक ?० प्राप्तिस्थान- ४-३ ६ अर. लि व्यवृस्थापक -[सधी जन ग्रन्थसाला अनेकान्त विहार पद सिघी सदन ९, शान्तिनगर; पोष्ठट-सावरसत्ती | | (५ ८, गरियाहाव्रोड; पो० चालीगंज अहसदानबाद कलकत्ता स्थापनान्द ) सर्वोचिकार संरक्षित | [ दि० सं० १६४६




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