तेलुगु वाङ्मय विविध विधाएँ | Telugu Vanimay Vidya Vidya

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Telugu Vanimay Vidya Vidya by बालशौरि रेड्डी - Balshori Reddy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तेलुगु भापा और साहित्य 19 सुब्रह्मण्यम, दाशरथी, कालोजी नारायणराव, अजता, के० वी० रमणा रेड्डी, रेंटाल, पुरिंपडा आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय है । विविध प्रवृत्तियाँ : तेलुगु कविता पर राष्ट्रीयता का प्रभाव है तो दूसरी तरफ अपनी मातृ- भूमि के प्रति अगाध अनुराग भी । इस परंपरा के काव्य-प्रन्थों में 'आन्‍्क्र पुराण', “'महान्दोदय', 'नागार्जुन सागर, 'पेतुगोंड लक्ष्मी' आदि सुप्रमिद्ध है। श्री पृट्रपति नारायणाचार्यूलु जंछाले पापख्या शास्त्री, वोठ भीमनना, मी० नारायण रेड्डी, पल्‍्ला दुर्गंगत आदि असंख्य कवियो ने तेलुगु काव्य-भारती की आरती उतारी है। तेलुगु मे जितनी संख्या मे कवि है, संभवत किसी भाषा में इतनी संख्या में नही होंगे । नाटक ६ तेलुगु मे करीव दो हजार नाटक रखे गये है। प्रदर्शन की दृष्टि से भी अधिकांश नाटक मंच पर अभिनीत हो सफलता प्राप्त कर चुके है । कवीरद्र रवीन्द्र नाथ विजयवाडा केवल तेलुगु नाटक देखने आये थे । तैतुगु नाठको की पृथ्वीराज कपूर, शाताराम आदि ने बडी भ्रस्तुति की है। तेलुगु भाषा में कुरवंजी, यक्ष गान, भामा कलापमु, वीथि भागवतमु इत्यादि लोकनाटय भी हैं जो अत्यन्त ही लोकप्रिय हैं। 'कन्याशुल्कम्‌' तेलुगु का प्रथम सामाजिक चाटक है जो अंग्रेजी नाटकों की शैली पर रचित है। संस्कृत, अंग्रेजी, बंगता, हिन्दी आदि भाषाओ से अनूदित नाटकों की सख्या भी कम नही है । तेलुगु में सामाजिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक, पौराणिक, प्रगतिशील नाटक भी रखे गये हैं। बीरेशलिंगम पुल, धर्मवरमु कृष्णमाधार्युलु, चिलक- मति लदगी नरसिंहम, आत्रेय, नाल वेवटेश्वरगाव, वेलम वेक्टराय शास्त्री, रानमन्तार, मुददु कृष्ण, अनिशेद्ट, श्रीवात्मव, भमिड़िपाटि, डी० नरसराजु, मल्तादि, आते य प्रभूति ने इस शाखा को परिपुष्ट किया है । आमन्ध्र प्रदेश में सैंकऱो की संख्या मे नाटक-कंपनियाँ स्थापित है। चिलकमति कृत “गयोपा- स्यानमु” नाटक की छेढ लाख से अधिक प्रतियाँ अब तक बिक चुकी है । तेलुगु रंगमंच के विफास का यह एक उत्तम उदाहरण कहा जा सक्‍ता है । अन्य विधाएँ : मेजुगू का गयथ साहिस्य पर्याप्त प्रौड़, पुष्ट एवं विविध भाद्त्र प्रस्पों मे पूर्व है। आयोषधास्मद य्न्‍्यों वे अतिरिक्त गणित, ज्योतिष, वैदक, शारप, धर्म, दर्शन, इतिहास, विशान, वर्ष, स्थाय आदि शास्त्रों से सम्यन्धित प्स्थ भी पराप्त मात्रा भे रखे गये हैं । चार -..२




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