बदलाव | Badlav

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Badlav by सूर्यशंकर पारीक - Surya Shankar Pareek

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डोकरी मैं विचार मे पड़ी देख र उणै कहयौ-मा | ' 'काँई बेटा ?! डोकरी जाणै ऊँडे कुवे सूं बोली । 'थू इतरी विचार में कियाँ पडगी !* की कोनी यूँ ई रे वेटा ।' * बे थूँ सोचतो होसी के प्रवोग म्हने सदोय रे वास्‍्ते गाँव छुड़ाय रही है । ना रे ना । आ बात कोनी । 'तो कई बात है मा ? 1! हैं सोच के वखत रे सागे कितरो बदबछ्छव आयब्यो ।' पक्वियाँ अे मा 27 कियाँ काँई गाँवों में परम्परा सूं समा कुटुम्व केला रबता पण अब इण अर्थतन्त्र रा चककर में सगहाई कण-कण रा होयन्या | माईत कठेई तो औलाद कठई। ओक भाई कठेई तो हूजी कठई ) “ली सग््ाँ रै खेती रो धन्धौ हो मा, इण वास्ते पीढियाँ लग अकण ठाये से पल्लौ रैवता | पण अब धन्ध वाड़ी अर नौकरियाँ रै कारण अकण ठाये भेछौ रैवणी सम्भव कोती ।' 'आई तो महै कैबूँ रे बेटा के कुटुम्च री अपणायत से खतम हुयगी.। नणद भौजाई रो मूंडी देखण सार तरस जाबेँ अर पोता-पोती, दादा-दादी सूँ असैधा रैय जावे । कोई अंक दूजे र॑ं युख-दुख में शरीक नी हु सके। कुटुम्ब तो जाएे अंगाई बिखरग्या। “अब इणरौ तो काई इलाज होवे मा ? थेकण ठाये बैठा पेट भराई होव॑ कोनी, इण वास्त धर मजबूरी में छोडणा ई पड़े । आँपण गाँव मे तीन सी घराँ री ब्रस्ती है। पै'लो सगला ई खेती करता। लारली पीढी बारे जावण लागी। पण परिवार सगझा गाँव में ई रैवता। घर-घर में गरार्या-चैरयाँ रो धपटमों धीणों हो । समव्ठा परिवार सोरा सुखी हा।ओ तो टाबरपण मे थे ईसे आपरे निजराँ देख्योड़ौ है। पछे होढ-होले लोग कुट्म्ब परिवार सागे लेयने वारे जावण लाग्या। आज गाँव से आधा घर ताछा लास्यौडा सूना पड़या है, जिणाँ में कबूतर गटरगू करे अर आधां में ब्रृढा-ठाडा मिनख बैठा है जिकी कियाँ ई करने उमर रा दिन ओछा कर / बात तो थारी साची है मा । की की # ही. हे डे गह अर अब तो सगठ्ठा घराँ रो ओं ई हाल है बेटा। जिको टावर पढ़ लिख ले वो मोदी हुयाँ गाँव छोड़ देवे । म्हर्न तो ला के गाँव घोर॑-धीरे उजड़ जासी अर शहराँ में मानथो कीड़ियाँ रै ज्यूं किलबिलावण लाग जासी7 जिणाँ मे की बुद्धि, हिम्मत गा क्षूका है, वे तो गाँव छोड़ ने जाय रहा है, पछ लारे तो फगत भीगार रैंय जासी । प्रवीणकुमार सोचण लाम्यो के मा सफा अणपढ़ होवताँ थर्काई हरेक बात नै विदाई / 25




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