देशन्वेपण की सरल कथाएँ | Deshanveshan Ki Saral Kathayen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Deshanveshan Ki Saral Kathayen by लल्लिप्रसाद पाण्डेय - Lalliprasad Pandey

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लल्लिप्रसाद पाण्डेय - Lalliprasad Pandey

Add Infomation AboutLalliprasad Pandey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रिन्स हेनरी नाविक १३ सेाज निकाले!!! इसी स्राज में इसने अपनी सारी अवर्धा पिता दी। परन्तु एक आकाश-विज्ञान की जानकारी से ही लाभ नहीं हे सकता था। इसी कारण इसने एक प्रफार क ऐसे जहाज बनवाये जिनसे दूर की यात्रा किसी सीमा तक निरापद हो सकती थी । इन जहार्जा का कैरावेल कहते है । सब १४१५ ई० से १४३० ई० तक पुर्तगाल के नाविकों ने कैनरी द्वीपसमूह श्र मडिया का अपना लिया। यहाँ के लकडी के व्यवसाय से इनका बडा लाभ हुआ | इसके पश्चात्त कई एक कैरावेल कप बेजाडार फे दक्षिण फी ओर भेजे गये। सन्‌ १७३४ ई० म॒ हेनरी का एक कप्तान भी वोजाडार के दक्षिण पहुँचा । मन्‌ १४३४ ई० में वेजाडार से पाँच से। मील दूर ये लोग राया डी आरा तक पहुँचे। सन्‌ १४४१ ई० में पहली बार इन्द्वोने कप ब्लाका पार किया। यहाँ कुछ काले आदमियों से भेंट हुई॥ य आदमी बहुत ही बदसूरत थे। इनकी नाक चपटी, आँसें छोटी छोटी और होठ फूले हुए थे। अपने शरीर का इस लोगों ने गोदने के चिद्द से भर लिया था। बदन पर कोई कपडा न था। केवल लैंगे।टी लगाये रहते थे। हाथ संयातेभालाघा, या सड्ढ, या तीर-धलुप । बोली इनकी अदभुत थी । प्राय ये लोग विदे: शियों से इशारे से ही बातें करते थे। इनका मुज्य मोजन पशुओं या मल॒ुष्यों का मांस था और इन्ही का शिकार करना इनका पेशा था। अब ये लोग बन्‍्दी कः




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now