आर्यसमाज का इतिहास भाग 1 | Aryasamaj Ka Itihas Bhag 1

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Aryasamaj Ka Itihas Bhag 1  by श्रध्दानन्द जी शर्मा - Shradhanand ji Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डितीद परिच्छेत । (११ ) आशन्‍ूू्णमअ>०म मम वाह #अभमममन न इमाम पी मम मुकाम मय कर पा माप सपा )3+००००५१३॥१॥ मनन म कमाया मामा “मम नए पमया मम नीलम ा+०६१९॥* नाम नाना हा प्रादिति मे पुत्र की इच्छा मे मात तम्यार किया। उस भाव का शेष भाग खाया। उसप्े गर्म होकर घादित्य उत्पन हुए । इस प्रसार की ध्याज्यायें आह्मणों भें बहुत हे | ब्राह्मणकार्रों ने सरल बात का महत्व पण कारण बताने के लिये प्राय इसी प्रकार की कल्पनान्नों तथा अर्थंवादों से फाम लिया है। ममुष्य बुद्धि इसी प्रकार बहुत सीधे अर्थ में उल्लकन डाल लिया फर्ती है | यहा पर यह दृदय में भकित फर छोडना चाहिये कि ह्ाह्मण- के इन्हीं अर्थयादों के विस्तार का नाम पुराण हुआ पुराणं में ब्राह्मर्या की इन अभदमुतकल्पनापों की नींव पर झोर भी भपिक शानदार कम्पनाभों के महल खडे किये गये हू । ब्राह्म्ों की इन कल्पनाभों को दिखाने से हमार यह तात्पय नहीं कि उपमें सित्रा ममेले के कुछ है ही नहीं!। भाज'मी बहुत सेवैदिक शब्दों के मुल जर्थ जानने में ब्राह्मण ही एकमात्र सद्दायक्ष हो सकते हैं। मन्‍्त्रें भोर मत्य खण्डों की ध्याज्याद्वाश आद्मणों ने वैदिक जनता का उपकार भी बडुत' क्रिया है-इसमें सन्देट नहीं। दूसरा विध्यश है । आ्ाह्म्णों का मुख्य भश यही है । आ्राह्मण निय नेमित्तिक या फी विस्तृत घ्याख़्या के लिये लिखे गये थे | यह का वेदमस्त्रों की ज्याउ्या और चर्चा के बिना प्रस्म्भव था-इसलिये माह्ष््णे। में यनें। की विधि और यपसम्बन्धी चेदमर्न्तरा की ब्याख्या-यद्‌ दोनों ही कार्य साथ साथ पाये जाते हैं । बआाह्मण प्रन्धोंम यज्ञों की विधि की विस्तृत व्याख्या द-भोर उसके एक ३ अश का कारण समझाने का भी यत्न किया गग्मा है। मुण्य ब्राह्मण यज्ञ को ही प्रतवान मानकर उनकी व्याख्या करते हैं | यह कहना से| ठीक नहीं कि ब्राह्मण केवल' फमपह् को घमः मानते है-ज्ञान या उपासना की तुच्छ समझते है, क्योंकि ब्राह्मण मन्‍्यों में एक स्थान पर भी क्षान कम आदि की तुलना नहीं की गई1 तुलना पीछे. हुई झोर ज्राक्षण ग्रन्थों की ही धमि- प्रन्थ माननेवालों मे #शाम्तायस्य किपार्थत्वादानथ क्यमतद््थानाम्‌ इत्यादि मीमासा सुत्रों की यह व्याख्या की कि वेद का उद्देश्य केवल यव की विधि बतलाना है--जिसका तात्पर्य यज्ञ में नहीं, वह चनर्थक है। नाह्मर्णा में केवल कर्माश की च्याए्या है आह्मण ग्रन्थों का प्रतिणय विषय दो भागों में बाठा जाय तो वह दो भाग बव्या- ख्थान और विधान कट्लखायगे | उनमें से पहला भाग भागे चलकर पुराणों भौर भय देशों की #9५्र४०४४ की कल्पनामों का कारण हुमा भोर दूसरा भाग कवद् झौर छापबरो।डय फा मूल सिद्ध हथा |




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