आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि बालकृष्ण शर्मा | Aaj Ke Lock Priye Hindi Kavi Bal Krishan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खीमारिया न एव साथ उनपर आजश्नमण क्या था। वीमारिया के चंगुल भ एक जार फ्सतर व छूट ही नहीं । जनकी वाणी चली गई थी एक हृद तक स्मति नो । हाय-्पर ता, खर राक्तिहीन है ही झए थ। वह भव्य मुखमप्डल पीला ज्यातिपुज नत्र ज्योत्िहीत भ्रौर सुदर दृप्द पुप्ट शरीर हड्डिया वा टाचान्मात पह गया था। वाणी क बात्शाह के व्म प्रकार मूक हा जान से बटा कप्ट औौर जया है सवता है ? अन्तिम वर्षो में व पूणत इश्ापिल हों गए थ। रद्रासकी माला पहनने जग 11 रामायण तथा विनयपत्रिका और पट व कुछ सजा वा भी नियमित चांठ करत थे । उनकी मत्यु म कुठ दिन प”ल बीमारी वी अवस्था म ही उसके ज-म दिवस के उपयक्षय मे राजधानी ब॑स॥हित्यवाश न उनका ग्रमिनादन किया था। यह खत्मत्र अपन ढंग वा निराला ही उसव था। सारा सच साहित्यवारों न हो खहन किया था। जिसने जहा सुना ठटीडा झ्ाया। किसी भी प्रवार बी तडब “मइव नहीं थी ग्रयात शान्त एवं निमत वातावरण म हिंठी के साहित्यवारा न “नवीन जा क चरणा मे श्रद्धा व सुमन चटाए। टिनकर जी बी आख्सें जाता समपित किया जानवाला झ्भिन-टन पत्र पटत्त हुए भर भर आती थी और वितन हा साहित्यिका वी आजा स तो घारा ही व_ रही थी। हिन पर टिल उनकी हेया किताजनत हांती गरर । मत्यु सम ठान चार दिन परेज उनकी चना दी जुप्त हो गई थी । दीप बाल तक ऋइसहमीय बटना और बृप्ट सहन वा परायात रस महामानव ने २६ अप्रल सन्‌ १६६० को ७मरे पर झ्रतिम साम जा। उनको मत्यु का समाचार पाकर दह के साहित्पित एव राजनीतिक जगत्‌ म शोक वी एक लहर ही गद 1 उसी रात को उनवा व टिल्‍्जी से ल जाया गया प्ौर २० श्रप्रव १८९० की दापहर था कवि दी जजर हह का प्राप्मा का डोला सजन ऋभवन पह़च गया । श्री वालबृष्ण राव न उनना बार मर विखा है. यति दिसा उपयासपार न नेकान जी व *तिवत का वल्पना वी हाता उन लख नायक वा चित्राउन किया होता ता हम शायट यही वल्त कि उसने अतिरजना को है। हँस कल कि न ता मई रुतना सरल टाद्ध भावुव उदार और साहमी हाता है जिलना उसने अप्व४” शाजडू एए हर्मा, नवान




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