यातना शिविर | Yatna Shivir

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Yatna Shivir by स्वदेश भारती -Swadesh Bharti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'करने की सीढ़िया मात्र है । सभी रास्ते प्रेम के चौराहे तक जाकर खत्म हो जाते हैं ।' लाइन में खडी सभी लडकियां खिलखिलाकर हंस पडी । जुबेदा ने गरीर होते हुए नम्नता से सिर झुकाकर कहा, “क्षमा कीजिएगा । मेरा विषय है--समाजशास्त्र, राजनीति और इतिहास और आपका 7! उसने गीता से पूछा । “बस, वही जो आपका ।! “अरे वाह । चलो, अपना भी कोई साथी है ।” वह हंसते-हँसते बोली, मेरा रास्ता तो प्रेम का है, आपको तो यह रोग नहीं 7? फिर गीता की आखों मे झाकते हुए बोली, “मै आपको लतीफे सुनाऊ तो आप बुरा तो नहीं मानेगी ?' नहीं, आईं लव दी रोजी फ्लावर्स मूविग इन लाफ्टर-यानी मै गुलाबी फूलों को 'हंसी मे झूमते हुए देखना मसद करती हू ।' इस पर जुबेदा ने चहकते हुए कहा, “वाह ! मजा आगया । आप तो शायरी भी करती हैं। अपना ऑटोग्राफ दीजिए न, प्लीज 1! लाइन मे खडी सभी लडकिया फिर हंस पड़ी । गीता को भी हंसी आये बिना न रही । उस दिने से दोनो प्रगाढ़ मित्र बन गयीं और उनकी मित्रता पर आतरिकता का रंग चढ़ते देर न लगी । हर रोज कब, कौन-सी घटना हुई, कौन-सी विशेष बाते हुई, पढाई, क्लास, कपडे, खाने से लैकर शादी, प्यार, लडकियो के विभिन्न दृष्टिकोणों, आशाओं और महत्त्वाकाक्षाओं, भविष्य के सपनो, शेख मुजीब, आवामी लीग और ब॑ंमलादेश की समस्याओं पर उनके विचार एक-से थे । वे आपस की मानसिक, आर्थिक समस्याओं को भी बाट लेती । विश्वविद्यालय के 'छात्र सघ' की सक्रिय सदस्या भी थीं वे दोनो । जुबेदा पिठा की इकलौती बेटी थी । छः साल की थी, तभी उसके ऊपर से मां की छाया उठ गयी । उसके पिता मौलाना हवीबुस्ला चौधरी ढाका 'कार्पोरेशन के काउसलर थे । सिद्धेश्वरी बाजार मे कपड़े की बड़ी-सी दुकान ची--ढाका स्टोर्स' । पत्नी के दिवगत होने के शोक मे उन्होने दुकान-व्यापार आतना-शिविर / 19




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