श्रमणोंपासक | Shramanopasak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : श्रमणोंपासक  - Shramanopasak

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about चम्पालाल डागा- Champalal Daga

Add Infomation AboutChampalal Daga

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अमणोपासक : धर्मपाल विशेषांक ९७/ 3 ए्रुरू कर दिया। ३] |. प्रारम मे मैने यह कल्पना नहीं की थी कि ऐसा युगान्तरकारी परिवर्तन ग़ेहो जायेगा, केवल यही सोचा था कि इन दलितो को भी अपने उत्थान का पेअवसर मिलना चाहिए | बाद मे अ भा साधुमार्गी जैन सघ के कार्यकत्ताओ ने | इनकी ओर ध्यान दिया। अपने इन बिछुडे भाइयो से मिलकर एक क्रातिकारी 1] कदम में अपने आपको संयोजित कर दिया। संघ के तत्कालीन मत्री श्रीमान्‌ | जुगराज जी सेठिया एक बार धर्मपालो के बीच पहुचे और सकूचित होने वाले धर्मपाल बन्धु को बाह मे मर कर उठा लिया और गले लगा दिया। यह दृश्य | देखकर मैने सोचा कि प्रभु महावीर के सिद्धान्तो को समझने वाले आज भी । मौजूद है। | सघ के कार्यकर्त्ताओ ने अपना कर्त्तव्य समझा और उनके बीच मे पुन. ! पुन. जाकर, पदयात्राए करके उनको समझाया। सघ की उच्च घरो की महिलाए भी उनके घरो मे पहुची। कैसे पानी छानना, कैसे व्यर्थ की हिसाओ से बचना, कैसे जीवो को अभय दान देना आदि व्यवहारिक बातो से कैसे सहज ही धर्म कमाया जा सकता है। इन बातो से परिचित कराकर उन्होने इन गिरे हुए परिवारों को ऊपर उठाने का अपना दायित्व समझा। पूर्व मे श्रीमान्‌ गेदालाल नाहर, हीरालालजी नादेचा, गोकुलचन्द जी सूर्या आदि कतिपय संघ के वरिष्ठ कार्यकर्त्ताओ ने और वर्तमान मे श्रीमान्‌ गणपत राज जी बोहरा, पी सी चौपडा, समीरमल जी काठेड, गुमानमल जी चोरडिया, भवरलाल जी कोठारी एव दीपचद जी जैन (जिन्हे विनोबा जी ने मानव मुनि के नाम से सबोधित किया) चम्पालाल जी पिरोदिया (मामाजी) आदि अनेक महानुमावो का इस रचनात्मक प्रवृत्ति मे शुभ भावो का जो योगदान है, वह अन्यो के लिए अनुकरणीय है। एक मास भक्षी व्यक्ति से यदि कोई अमक्ष्य छुडवाता है तो वह कितने जीवो को अभयदान देता है ? कितनी तडपती आत्माओ को कुछ समय के लिए मृत्यु भय से मुक्त करवाता है। यह तो एक व्यक्ति की बात हुई पर जहा अनेक व्यक्तियो - हजारो व्यक्तियों से मास मदिरा आदि दुर्व्यसनो को छुडवाना और उसमे सहयोग देना कितना बडा प्रशस्त कार्य है। जब कोई प्रवृत्ति या कार्य चलता है तो उसमे कुछ न्यूनताएं, त्रुटिया रह जाया करती हैं। सहृदय व्यक्तियो का उस समय कर्त्तव्य हो जाता है कि वे उनकी आलोचना-प्रत्यालोचना आदि नहीं करते हुए उन तब्रुटियो, न्‍्यूनताओ को कैसे दूर किया जाय इस और परामर्श देवे। आलोचना करने से कार्यकारी बन्धुओ मे कुछ ऊचे नीचे परिणाम आ जाते हैं वे उदासीन व हतोत्साही हो जाते हैं। अत. उपस्थित जन समूह से यही सशोधन है कि आप अपने इन बिछुडे हुए भाईयो को आत्मीय भावना से गले लगाये, इनके पवित्र उद्धार मे सहयोगी बने। यदि ऐसा नही बन सके तो कम से कम ४ को [जि छा [छि छा [छि छि] [डि [डि| डि डि। कि डि [डि डी |& | ४. 2




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now