ऋग्वेद संहिता भाग 8 | Rigved Sanhita Bhag 8
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
275
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अ०, ५ म0, ९ अध्या०, ! अन्ु०0]) सटीक ऋग्वेद-संहिता १8
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तवां विश्वे सनोषसो देवासों दृतमक्त
सपय्यन्तरता के यज्ञ षु देवमोडते ॥१॥
देव॑ वो देवयज्ययाप्रिसीड़ीत मत्य! |
समिद्ठ: शुक्र दीदिद्यतश्य योनिमासदः सप्तस्य योनिमासद/॥0॥
१९ भुक्ते
्ररिनि देवता | अप्के अपत्य विश्वतागा कृषि । भनुष्टुप भ्रौर पढक्त छद।
प्र विश्वसामन्नत्रिवदचों पावकशोचिषे ।
यो अध्रेष्वीड्यों होता मन्द्रतमो विशि ॥१॥
न्यप्नि जातवेदसं दधाता देवशलिज्ञप् ।
प्र यज्ञ एल्ानुषगद्या देवव्यचस्तमः ॥१॥
चिकित्विन्मनसं था देव मरतांस ऊतये ।
वरेण्यस्य तेवल इयानासो अमनन््म्हि ॥१॥
अमे चिकिद्धयस्य न हुदं वचः सहस्य ।
त॑ ला सुशिप्र दप्पते स्तोमेवर्धन्यन्नयो गीमिः गुम्मन्यत्रयः ॥8॥
३ है क्रान्तदर्शी अभ्नि, प्रतन्न होकरके सब देवोंने तुम्हें दूत बनाया था; इसीलिये परिचयां करनेवाले
यजमान तुम्हारा ( अभ्नि देवका ), यह्षमें देवोंको चुलानेके लिये, यज्ण करते हैं।
५ है दीप्िशील भप्नि, मनुष्य लोग देवयशके लिये तुम्हारी स्तुति करते हैं। हृवि द्वारा प्रवृद्ध
होकर तुम दीप होओ | तुम सद्यमूत सल ऋषिके स्वगंसाधन यज्ञस्थव्में देवरुपसे ठहरो ।
है विश्वसामा ऋषि, तुम अत्रिकी तरह शोधक दीछिवाले उन अग्निकी अर्चता करो, जो यद्ञमे
सब ऋत्थिकों द्वारा स्तुत्य हैं, देवोंके आह्वता हैं. भर जो अत्यन्त स्तघनीय हैं ।
२ है यजमानो, तुम सब जातवेदा, चोतमाद् और यज्ञकारक अपक््निकों धारण फरो-संस्थापित
करो, जिससे आज देवोंके प्रिय, यक्षसाधन और हम लोगोंके द्वारा प्रदत्त हृव्य अ्निकों प्राप्त करे।
: > है दीप्तिशील अप्नि, तुम्हारा हृदय ज्ञानसम्पल्न है। तुम्हारे निकट हम छोग रक्षाके लिये
उपस्थित होते हैं। हम मनुष्य सम्भजनीय भप्निकों तृष्त करनेके लिये स्तवन फरते हैं। .
* ७४ है बलपुत्र अग्नि, तुम हमारे इस परिचरण स्तवनकों जानो । है सुन्दर हनू-नासिकावाले
हे गृहपति, अत्निके पुत्र स्तोतों द्वारा तुम्हें वद्धित करते हैं और बचनों द्वारा अछड्डूगत करते है।
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