कल्याण कथा कोष खंड 1 | Kalyan Katha Kosh kosh 1

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Book Image : कल्याण कथा कोष खंड 1  - Kalyan Katha Kosh kosh 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जज पज्ज्ज 5३ ० अचोय॑ जय & : अच्छे क्या असन्‍्तोष से दुखी प्राणी ही लोभ से कलुषित होकर चोरी करता है ? , हाँ; उत्तराध्ययन सूत्र मे लिखा है-- अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स लोभाविले आययई अदत्तं । कोई दृष्टान्त ? सुनिये-- एक महिला की वचपन से ही चोरी करने की आदत पड गई थी। जहाँ कही भी वह जाती, कुछ-न-कुछ उठा ही लाती । उसका पुत्र माँ की इस आदत से वहुत परेशान था। एक बार विवाह के अवघर पर निमत्रण पाकर पुत्र अपनी माँ के साथ ननिहाल गया। मार्ग मे उसने माँ को अच्छी तरह समझा दिया कि वह अपने को संयमित रखें- ऐसा न हो कि घर की इज्जत सवके सामने धूल में मिल जाय । माँ ने कहा कि वाह में कोई पागल थोड़े ही हूँ, जो घर की इज्जत का भी खयाल नही रखूंगी। दोनो उत्साहपूर्वक विवाहोत्सव में शामिल हुए । उत्सव समाप्त होने के वाद जब बहन-बेटियों को विदाई दी जा रही थी, तभी मौका पाकर माँ ने दो-चार ब्लाउज पीस उठा लिये। वेटे की उस पर नजर पड गई, तत्काल उसने टोका- “माँ ! यह चोरी क्यो कर रही हो ?” माँ बोली-'में चोरी कहाँ कर रही हूँ ? अपनी आदत को थोड़ी-सी खुराक दे रही हूँ ॥ विशन्ति नरक घोर, दु खज्वालाकरालितय्‌ । अमृत्र नियतं मूढ़ाः, प्राणिनश्चौर्य चिता: ॥ : (चोरी से चवित (कुचले) प्राणी मूढ़ होते हे । वे निश्चित रुप से दु.ख रुपी ज्वाला से भयकर-ऐसे घोर नरक मे प्रवेश करते हैं।) अर सर




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