ऋषिदत्त रास | Rishidatta Ras

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Book Image : ऋषिदत्त रास  - Rishidatta Ras

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कलकल करती बहती नदियाँ, कर भर भरते भरणे रे । खडे पहाड़ किये सिर ऊँचा, बातें करने रे, सुनो० ॥1२९॥। कसती व्यंग रंग में हँसती, मित्र मंडली प्यारी रे । जानैयों की जून जगत से, मानी न्‍्यारी रे, सुनो० ।॥३०॥) कहा मित्र ने अटवी आगे, वो भ्ररिमर्देन वाली रे । वो अपना दुश्मन कहलाता, जालिम जाली रे, सुनो ०।।३ १॥। लौठे सभी किया भोजन फिर, आगे हुए रवाना रे । अ्रटवी निकट निशा होते ही, पड़ा रुक जाना रे, सुनो ०।३२॥। पुर सा सुन्दर नगर गया बस, जलने लगी मसालें रे । किया प्रबन्ध सुरक्षा का सब, श्रम न निहाले रे, सुनो ० 11३३॥। हुआ सवेरा चले पहर दो, सुख से श्रटवी लांघी रे । निपटे सभी तभी खाने की, चीजें मांगी रे, सुनो० ॥1३४॥। दुग्ध पान कर राजकंँवर अरब, बेठा है सिहासन रे । भावी के सपनों में खोया, करता चिन्तन रे, सूनो० ।॥३५॥। इतने में अरि मर्दन नृप का, दूत एक चल आया रे। सुना रहा जो समाचार, नृप ने कहलाया रे, सुनो० ।1३६॥। बिना इजाजत सीमा में घुस, तुमने मौत पुकारी रे । लोटो वापिस वरना रण को, करो तैयारी रे, सुनो० 11३७।। राजकंवर बोला जा कह दे, लडने को तू आजा रे । दूत गया झ्षट बजा दिया है, रण का बाजा रे, सुनो० ।1३८।॥। [ 5




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