भारत का संगीत सिद्धान्त | Bharat Ka Sangeet Siddhant Granthmala-28

Bharat Ka Sangeet Siddhant Granthmala-28 by पं. कैलाशचंद्र शास्त्री - Pt. Kailashchandra Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. कैलाशचंद्र शास्त्री - Pt. Kailashchandra Shastri

Add Infomation About. Pt. Kailashchandra Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
विस्तृत विषय-सूची भूमिका न-न प्रावककथन अनुसन्धान की प्रेरणा--असूसन्घधान-सग्बन्धी समस्याएँ और निप्क्प -म्ाचीन सज्जौतकास्त्र की दुर्बोधता और उसके कारण--प्रचलित सज्जीत-पद्धतियों में रस-भाव के प्रति उदासीनता--अनुसन्धान के अधार--प्राचीन सम्प्रदाय--भरत-सम्प्रदाय की नाट्य-शास्त्रगत विशे- पताएँ--उपछलब्ध नाट्यशास्त्--भरत एवं आदि भरत--आदि नाट्य- शास्त्र--भरत-सिद्धान्तो पर विदेशी श्रभाव ! --महर्षि भरत के स्वर और आधुनिक भौतिक विज्ञान--म्रस्थ की शैली--कतज्ञता-ज्ञापन |. -ए१-४८- प्रथम अध्याय आप्त वाक्यो को हृदयज्जम करने के लिए विशेष दृष्टि--विद्या का अधिकारी--ग्राम, स्वर, श्रुति--मण्डल-प्रस्तारो में पड्जग्राम एवं मध्यमग्राम--नवतन्त्री पर षाडूजग्रामिक स्वरो की सिद्धि, नवतन्त्री पर भरतोवत स्वर-व्यवस्था--मध्यमग्राम--सितार पर षाइजग्रामिक सप्तक की सिद्धि--शरुतिनिद्न या श्रुतिदर्शन-विधान--भरतोवत चतुः सार- णाएँ--लेखकनिर्मित यन्त्र श्रतिदर्पण' पर चतु सारणाओ की सरलतम विधि--श्रुतियो के परिमाण--सप्तक में श्रृतियों का क्रम एव उसकी महत्त्वपूर्ण विशवेपताएँ--श्रुतियो के विभिन्न परिमाणों के भेद में अन्तर जानने की भारतीय विधि । नरैनरे देन द्वितीय अध्याय मूर्च्छंता की व्युत्पत्ति एवं लक्षण--मूच्छेना की चतुर्विधता के सम्बन्ध में दो दुषप्टिकोण---ग्रामद्रय की मूच्छ॑ंनाओ का रूप--ग्रामहय-मूच्छेंना- बोधक श्रुतिपरिमाणयुवत मण्डल-प्रस्तार--ग्रामदय-बोधक सारणी- ताने--दौनों ग्रामो में अविलोपी स्वर--मूच्छेंनाओ का प्रयोजन, पूर्वा-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now