भारतीय नारी | Bhartiya Nari

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Bhartiya Nari by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय स्त्री का आदसें छ सावियों ने पिता को आज्ञा स्वीकार कर ली और वह एक स्वणेखचित रथ पर आरूद हो, पिता द्वारा साथ दिए गए अनुचरों और वृद्ध मनियों सहित, विभिन्न राज-दरवारों में जा-जा, कई राजकुमारों से मेंट करती रही, किन्तु उनमें से कोई भी उस्तका हृदय आकर्षित स कर सका । अस्त में वे लोग तपोवन-सिथत एक पिच मुनि-कुटीर में आए । दुमस्सेन नामक एक नुपति को वृद्धावस्था में शभुओं ने पराजित कर, उसका राज-पाट छीन लिया था! बेचारा राजा इस अवस्था में अपनी भाँखें भी खो बैठा । निराश ओर असहाय हो, इस वृद्ध, अन्ध राजा ने अपनी रानी « और पुत्र को साथ से जंगल में शरण छी, और कठोर ब्रतोपवास में अपना जीवन चिताने लगा । उसके पुन्न का नाम सत्यवान था ! दैवयोग से सावित्री सारी राजसभाओं में जाने के बाद इसी तपोवन में आ गई! सावित्री ने कुटी में आकर राजतपस्ती संत्यवान के दन किए. और मन-ही-मन उसे अपना हुृदयेश बनाने का संकल्प कर लिया। राजसभागीं और राजप्रासादों के निवासी राजकुमार जिस सावियी का मन मोहित ने कर सके, उसी का हृदय आज वनवासी थुमत्सेन के पुत्र सत्यवान में चुरा लिया । सावित्री पितृगृह छौट आई। पिता ने पुछा, “वत्से, क्या कोई राजकुमार दिखा. जिससे तुम विवाह करना चाहोगी ?” लज्जा से. रक्तकपोल हो सावित्री विनयपुर्वक बोली, “हाँ, पिताजी 1” तो, उस राजकुमार का नाम क्‍या है?” “वे युवराज नही हैं,-- राजा युमत्सेन के पुत्र हें, जो अपना राज्य खो चुके है। वे एक राजपुत्र हूं, जो राज्य-विह्दीन हैं, और आश्रम




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