जैन साधना पद्धति में ध्यानं योग | Jain Shadhna Padti Me Dhyan Yog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23.38 MB
कुल पष्ठ :
708
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about साध्वी प्रियदर्शनजी - Saadhivi Priydarshan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकाशक की कलम से परम पूजनीय आचार्य प्रबर श्री आनन्दकऋषिजी महाराज का सपूर्ण जीवन अध्ययन अध्यापन लिंतन-मनन से सरावोर रहा है। ्ञान-साधना यही आपके जीवन का प्रधान अंग रहा है। नाणस्स सव्लस्स पगासणाए यह भगवान महावीर का आदेश आचार्थ घ्रवर के जीवन का आदर्श कार्य रहा है। धार्मिक परीक्षा चोर्ड रत्न जैन पुस्तकालय शिक्षा सस्थाएँ आध्यात्मिक प्रबचनों एवं ग्र्थो का प्रकाशन आदि की प्रस्थापना आपका आन्दोलन रहा है। यह आपकी अध्ययमशोलता का दूरगामी सुन्दर परिपाक है। स्वय चिंतन-मनन अध्ययन रूप महोदधि में डुबकी लगाकर शान-मुक्ती का लाभ उठाने से आपका समाधान नही हुबा। अपने शिष्य-शिष्याएँ सपर्क में आनेवाले भी इस ज्ञान-साघना में सदा आगे बढ़ते रहें यह भी आपकी उत्कंठा रही है। यही कारण है कि इस उम्र में भी आप प्रतिदिन मुमुझुओं को शान की सथा देते रहते हैं मार्गदर्शन करते हैं। आपके साघु-साध्वियों ज्ञानार्जन के लिए सत्तत लालायित रहते हैं। इस क्षेत्र में अपनी विशेषताएँ प्रस्थापित करने में उनके प्रयास जारी रहते हैं। आचार्यश्री की प्रेरणा से अनेकों साधु-साध्वियाँ धार्मिक एवं विद्यापीठीय परीक्षाओं में प्रालिण्य प्राप्त कर रहे हैं। साध्वी प्रियदर्शनाजी भी इन्ही जिज्ञासुओं में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। आपकी गुरुनी जैन शासन-चढ्रिका स्वर पू उज्न्वलकुमारीजी भी एक अध्ययनर्त विदुषी थी। उनकी विद्वत्ता की प्रसादी का लाभ स्वयं महात्मा गाधीजी ने भी उठाया था। महासतीजी की अनेक शिष्याएँ पीएच डी भी कर चुकी हैं। आचार्य भगवनू की प्रेरणा महासतीजी का आदर्श तथा गुरु-भगिनी एवं अग्रजा साध्वी प्रमोदसुधाजी के उत्साह का संबल साध्वी प्रियदर्शना को प्रगति करने में बल देते रहे। इन्ही का सुपरिणाम है पीएच डी. के लिए प्रस्तुत यह शोध प्रबन्ध जैन साघना-पद्धति में ध्यान योग पर संशोधन करने की उत्कटता साध्वीजी के मानस में जागृत हुई और डॉ. अ. दा बतरा जैसे विद्वान पंडित के मार्गदर्शन की सुसधि का उत्साहेवर्धन लेकर विभिन्न दर्शनों आगयों टीकाओं अंधों आदि का मन्थन शुरू हुवा। जो भी सन्दर्भ स्थान दृष्टिगत हुए उनका अनुशीलन करके टिप्पणियाँ तैयार होती गयीं। केबल त्तान्त्रिक एवं तास्तिक ज्ञान-प्राप्ति से उनको सन्तोष नही हुआ। पठ्ति साहित्य में से उपलब्ध ज्ञान अनुभवसिद्ध भवसिद्ध होने पर अधिक निखरता है यह धारणा होने से साध्बीजीने स्वय ध्यान के अयोग किए मन-शान्ति प्राप्त की और शास्त्रीय जानकारी त्तथा मन्दरह
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