राजस्थानी साहित्य संग्रह | Rajasthani Sahitya-sangrah Bhag-i

Rajasthani Sahitya-sangrah Bhag-i by नरोत्तमदास - Narottam Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रू हू उ सो समदया वण रहो छ चरदा मड न रही छुन। बिजली फिलोमिल कर न रही छू वादलाँ भर लायी छ 1 शेह्राँ-सेहराँ वोज चमक न रही छ 1 जाज युलटा नायक घरसू नीसर झग दिखाय दूसर घर श्रवेस कर छत शोर कुहुक छ ढडरा ढहक छु। भाखरौरा नाला बोल न रहा छ 1 चासी नाडा भर न रहा ऊउ चोटडियान डहव न रही छ। चनसपतीसूँ वेली लपट न रही छ। परभातरीं पा र छ । गाज भ्रावाज हुए न रही छ १ जाण घटा घण हरससू जमीसूं मिलण श्रायी छ 1 इस वख़त समइयम गगेंव नीवावत बौल छ मनरी उमग खोल छु 1 सलां सिकारारी दुवो हुवी छ । पतठा उपराति करि न रालान सिलामति हम भाग चसत रितिरा वणाव वसाणीरज छ दसखिस दिसा मलयाचल पहाडरो पवन बाजिमी छ 1 सीत मद सुगब गति मवेन सतबाला सगस जयू परिमल क्राला खावती यह छ। झढ़ार मार वनसपती मकरद फूलादिरा रस मौणती थकी बह थ 1 भ्रवर मोरीज छ कूपला फूटीज छ। बणुराइ मजरी छ। वासावली फूंटि रही छू 1 सु फूलि रहिया छ । रितिराज प्रगटियो छत वसत भायो छू 1 भमर मधघुकर वार बरी रिया छ। मपुरी वाणीरा सुर मरि कमिला वोति रही छ। बाग बगीचाँ दरखत गुलवारी मिलि फूल रही छत स० ए७८८ के लगभग रतनूं वीरभाण दूत राजरूपव ग्रय राजस्थानी भाषा का एम हद एतिहाहिष क्रःथ्य हू जिम पर्डित राभदरणजो भातोपा न नागरी प्रचारिणी सभा दारा ्रवाधित बराया हु। इस ग्रथ में कई जगह वार्ता था भी प्रयोग हुप्रा ह। यहां उसवा एक शदाहरण दिया जा रहा हु । इसमें पौरगजव का वणन हनन प्पौरगसा पातमा झासुर भ्वतार तपस्याके तेज पुज एव से विमतार । मापषा विहाई सा प्रतापका निदान भारतड भागे जिसी जोतसी जिहान 1 जापक़ा पगयर धापका दरियाव तापका सेस ज्वाल दापवा कुरराव । सपसंका जतवार भ्वसेदा वाई भरिदल समुद्र भाए कुमपक भाई 1 रहणीमें जीगएवर घदणीमें जगदीस ग्रहणीमें सिवनेत्र सहजीमें झद्दीम । जाके जप तप पाग ईदर पाधोन त्तादू छल वाहवस कुश घर हीत। ८ वीं ताब्दी में ही ददावत-सव दो रचनाएं प्राप्त हुई ह जिनमें से पहली रचना नरबिदास गोडगी दवावत भाट सालीदास रचित हू । इसकी प्रति अनूप सरकत सान्यरी में रैद यीं घतासटी पूर्वाद की लिखित प्राप्त हुई हद । मादि भन्त दे उहरण इस प्रवार हू-- झादि- हीतवाग छात हीसवाण युर भजमर जोधपुर मांण पुर भजवाल व भ्रम गोव प्रसाद ढीलडी यौच महिपत्यों मोड । भन्त- रंग छहरत ह। रपरे पहुरते हू । ठासक सीत्झवता हू । हजूरी पावता हूँ । चंदन उतरते पाव दे तप्ताम वर्रावट हु 1 जरयफत पाटता हू । पम्पर पलते टू । गमा विराजठो हु ।




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