महाभाष्य ऑफ़ पतंजली | Mahabhasya Of Patanjali Bhag-i Khand-ii

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Mahabhasya Of Patanjali Bhag-i Khand-ii by पंडित काशीनाथ - Pandit Kashinath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श 3 11000 पगूप' नाई श्रीभगवत्पतझलिविराचित॑ व्याकरणमहाभाध्यमू प्रग्ह्मादिसंज्ञानामक पथममादहिकम भमद्यादिसंज्ञाहिक (अ. रै पा. १ आहिक ५) [ मगृद्ासंज्ञाका विवेचन--इस आल्लिक्म मगृहम-संज्ञा (सू. ११-१९), घुन्संक्ञा (सू ९०), प-संश्ञा (सू. २९), संख्या-हंज्ञा ( सू २३-२५) और मिपात-संखा ( सू. २६ )--इनका विचार किया है। ये सब जाएँ सूतकाएंके पूर्वक बैपाकरणोंने कुछ विशिष्ट शब्दोंको दी होंगी । पुर और “ घ? के छ्िवा ये सब संज्ञाएँ अन्वर्थ भी हैं । इन इंत्ा-सूबोंके बीचमें ही * आयन्तवदेकस्मिदू” (सू. २१) सूप थोड़ाप्ता अपार्तगिक दील पड़ता है; परन्तु सन्धिकार्यसे होनेवाले शुण और वृद्धि जैसे एकादश होने के बाद एकादश पूर्वशन्दका अन्त्य वर्ण समझा जाय अथवा अगले शब्दका आदि वर्ण समझा जाप यह आशंका निर्माण हुई तो उप्त स्थानमें दोनों प्रकासी परिपादियां हैं ऐसा कइनेके लिए यद सूत्र किया है। प्रगुद्यसंज्ञा उतर स्वरको दी जाती है जो शंघिकार्य प्राप्त होते हुए भी कायम रखा जात है। अर्पके चाहें बाघ न निर्माण दो इसलिए दिवचनके ईक रान्त, ऊकारान्त और एकारान्त रूप तथा कुछ विशिष्ट राग्द्सपरूप उच्चारित किये जाते हैं, उन्हें य प्रगद्यप्तं्ता पूर्वाचार्थोने दी दे। “ ईदुदेत्‌० * (सू. ११) सूचमें ई, उ गौर एकारोंके आगे सूपकारोंने तकारहा उच्चारण किया दे। उनका विचार करते हुए भाष्यकाएने प्रश्ुत सूचके अर्थके तीन प्रशर दिये हैं- (१) ई, ऊ और ए स्वरोंके रूपका हा दिवचन ( अर्यात्‌ दिविचनवाचक प्रत्यय ) मरगुद्य होता है; (२) ई, ऊ और ए जिसके अन्तमें हैं ऐठा दिवचन ( अर्थात्‌ दिवचन-पत्यय ) मगृह्म दोना है, (९२), ऊ ौर ए जिसके अन्तमें हैं तथा. दिवचन-प्रत्यय भी जिसके अन्तमें है वह शब्द परगुष्म होता दे, ये तीन मकर देकर उनमेंते बीचका पडार कायम छिया है। * बदूप्ो मात्र ( सू. १९) सूपमें * अदूस्‌ ” शब्द्फे रूपनें महारदें आगे आनिवाले ई, ऊ, थीर ए स्वर प्रगद्य दोने दूँ रेखा कहा है। यहीं ' अदूसू” शब्दके ' द * कारकों * मे रेकार कहनेवाला निपादीका * अदुसोसे: ० * ( ८1२1८ ० ) सूप प्रहेतसूपको दीख ने पढ़ने प्रगूह्-संशा करनेमें बाधा आती है; पर प्मुद-सेंशाको “मे स्कार निमिश ही होनिसे महार प्राप्त इआ दिखायी देता है ऐसा प्रतिशादन करके माप्यकारने बह दूर की है 1 और यह भी बताया है कि कार्यराठपपमे “ अदूधों मात” ( शारा१२) और




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