शिवपूजन - रचनावली खण्ड ३ | Shivapoojan-rachnawali Khand 3

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Shivapoojan-rachnawali Khand 3 by आचार्य शिवपूजन सहाय - Acharya Shiv Pujan Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुधा | भंग की तरंग कलित कालिंदी-कूल कमनीय कदंब-कूज सद्यः्स्नाता सुन्दरी सीमंतिनी श्री राधघा- रानी-- विहँसति सकुर्चतिसी हिए कुच व्ॉचचर-बिच बॉहि। भींजे पट तठ को चली फिर-- ग्तच संभेठि कर शुज उलटि-- -मेंचक-कुचित केश-कलाप से नीर निचोड़ती हैं। पीछे के केलि-कुज से जानु-पानि महि विचरत श्रानन्द-कन्द ब्रजचंद मंद-मंद आकर मुह बाकर कुन्तल-राशि से रस-रस चूते हुए विमल वारि-विन्दु पान करते हैं--मानों मेघमाला से चातक की खुली चोंच में स्वाती-सलिल-विन्दु टपक रहा है--कमल के विकच-कोश में मोती मर रहे हैं। सुधा वहाँ टपक रही है | रस-पान कर तृप्त तरण त्रिमंगी कट वंशी के छोटे-छोटे छबीलें छेदों पर वही सुधा - सिक्त अघर स्थापित करते हैं । अधर-सुधा-मधघु मघुर कंपन के साथ चारों आ्ोर बहने लगता है। नीर प्रकृति एकाएक हिल जाती है--उसकी संजीवनी शक्ति शनायास खिल जाती है--वृन्दावन विप्लावित हो उठता है। सुधा वहाँ ढलक रही है | द्रौपदी -दुकूल -दलन दुः्शासन के चूण-विदीण वक्ष पर वीरासनासीन ब्रकोदर अपने दोर्द ड भुजदंड से उसका गला चाँपे श्रौर रोद्र-विस्फारित लोहित लोचनों से उसे देखते हुए अम-पूरित द्वीपि-दंतों से उसका रक्ताक्त झसिंड पकड़कर खींचते हैं । देन्य-दलित दुः्शासन अतीव करुण-कातर दृष्टि से उनका प्रतिशोध-प्रदीत्त पराक्रम देख रहा है--मानों भीमकर्मा वृकोदर के अ्ग्नि-स्फुलिंगमय नेत्रों की भीषण तृषा. शांत करने के लिए. प्रकृत करुणा _ का लबालब प्याला छलक रहा हो । दु्देशाग्रस्त दुःशासन के नेत्रों से अतृ्त भीम के लिए-- वहाँ सुधा छलक रही है|




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