नई कहानियाँ | Nai Kahaniya

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Nai Kahaniya by अशान्त त्रिपाठी -Ashant Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[. ९ देख जाता | कोइ और उसका हक छीने तो उसकी समभा में आाये । इसके बाद गांधी बोला पर इससे रोग अच्छा कैसे हो सकता है ? किसी को भी हा जब तक छीने जानेका चलन रहेगा तब तक किसी का भी चेन नहीं मिल राकता | गांधी की बात लेकर काला मोरे से लड़ने लगा । गोरे ने काले की बड़ी मारकाट मचायी । काला बोला कि अजी हम तुम्हारी इस मार्काट से डरेगे ही नहीं । फिर तुम हमारा क्या बिगाड़ लगे ? मगर हम अपना हक तम्हें न छीनने देंगे । हसारे ऊपर हमारा ही राज होगा। अब हम किसी के शुलाम सह रहंग | दुनिया के बहुत से रंग खुलने लगे । सभी न्याय अन्याय की बात समभाने लग । सबकी ससभा ने न्याय की बड़ी बड़ी पैनी बात साच निकाली । सोचा कि बात काले गोरे तक ही नहीं रुक जाती--पील़ा रंग सबसे बड़ा है। चाहे गास हो या काला सोने की बसंती चमक में सब की चआँखें चौधिया जाती हैं । सबके ऊपर राज करता है सोना सिका--पेसा | सोने की छुत्र छाया में गोरी चिट्ठी चांदी का रुपया काले वाजार से सॉंठ- गांठ करता है । सोने की छत्र छाया में एक घी का कौर खाता है दूसरा जूते और लाठियां। सोने की छत्र छाया में ही दुनिया च्यपने रंग बदलती है--काले को. गोरा गोरे को काला सच कों भूठ श्यौर भूठ को सच पाप को पुन्न और पुन्न को पाप कहकर दुनिया अपनी सनसानी कर लेती है ।




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