नाथ - योग | Nath Yog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घट [नाय-योग रामानन्द, तुकाराम, रामदास, शंकरदेव तथा श्रन्य--के चुम्बकीय प्रभाव, नाम-जप, नाम-संकीर्तन तथा धार्मिक भावनाओं के संस्करण एवं संयमन के रूप में जन-सामान्य के लिये उनके द्वारा प्रचारित श्राध्यात्मिक अनुशासन की सहज क्रियाओं ने समान रूप से जनता और उच्च वर्ग के हृदयों को प्रभावित किया । फलस्वरूप शव सम्प्रदाय तथा नाथ-योगी सम्प्रदाय की यौगिक क्रियायें पृष्ठभूमि में पड़ गयीं । पुरातनवादी ब्राह्मण-धर्मे के पुनरुत्थान के कारण भी नाथ पंथ का प्रभाव हिन्दू जनता पर कम हो गया । तुलनात्मक दृष्टि से प्रभाव कम हो जाने पर भी नाथ-योगी सम्प्रदाय भारतवर्ष के सर्वाधिक प्रचलित घामिक्त सम्प्रदायों में एक है। जैसा कि प्रोफेसर ब्रिग्स ने लिखा है-'“कनफटा योगी भारत- वर्ष में सवेत्र पाये जाते हैं । वे किसी भी घार्मिक सम्प्रदाय से भ्रघिक विस्तृत हैं। वे दक्षिण के उत्तरी भाग, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पब्जाब, गंगा के मेदानी प्रान्तों तथा नेपाल में तपस्वियों श्रौर यतियों के रूप में कभी छिट-फुट, कभी दलों में संगठित भी मिलते हैं । भारतवर्ष के पहाड़ी श्रौर मैदानी भागों में कुछ ही महत्त्व- पूर्ण पवित्र स्थान ऐसे हैं जहाँ नाथ-योगियों ने किसी प्रकार के मन्दिर मुरति, श्राथम या मठ की स्थापना नहीं की है । गोरखनाथ के सम्बन्घ में सभी प्रान्तीय एवं जातीय बोलियों में प्रचलित श्रगणित गीतों, गाथाश्रों, दोहों, नाटकों, वार्ताओओं, साहित्यिक कृतियों तथा योगसाधना सम्बन्धी ग्रंथों से प्रकट है कि विगत कई दताब्दियों से इस विशाल उपमहाद्वीप की जनता के धार्मिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर गोरखनाथ तथा उनके अनुयायिशों का' कितना व्यापक प्रभाव रहा है। हिन्दू जाति का एक बहुत बड़ा भाग श्राज भी गोरखनाथ तथा उनके योगी सम्प्रदाय के प्रति श्रसीम श्रद्धा रखता है।




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