ऋषियों के विज्ञान की श्रेष्ठता | Rishiyo Ke Vigyan Ki Shreshthata

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Book Image : ऋषियों के विज्ञान की श्रेष्ठता  - Rishiyo Ke Vigyan Ki Shreshthata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लि अआलाचना श्७ डु्े परिस्थितिसे प्रादुर्भाव हुआ इनका भी विचार इस वेदिक सत्पज्ञानके संदोघधनके साथ तुलनात्मक दृष्टिसे करना दोगा । मद्दा बारतमें वर्णित मद्दासमरका परिणाम यह डुआ कि वेदिक संस्कू- हिमें क्रांति हुइ । युद्धका जो परिणाम छजुनने गोतासें बताया था वेसा ही हुमा । छोगोंके मन अशांत दो गए सोतिक ज्ञान यानी विध्वंसक ज्ञान जनित तांडच देखकर सच्टिका जो उनमें ( वैदिक वाड्मयमें ) कम बताया शया था वह सोचनेको जनता झसमथ हो रह | शांति स्थापन करनेके द् चार्वाक जन बांद्ध नास्तिक भादि भनेक तत्वज्ञान जिसे ब्रह्म कद हैं वदद फेछा । इस प्रकारसे विघटित भोर विच्छंखछ समाजको दाकिद्दीन देखकर भनेक पडोसी कम संस्कृतिके छोगोंने भारतवर्षीय छोगॉपर शाक्रमण किया । उन्द्दोंने सूर्तियोंका खंडन करके सूर्ति पूजाका वेयर्थ बताया । जेसे काइमीरसें हुआ वैदिक ब्राह्मण भनेक मुसलमान बन गये | तत्वज्ञानक प्रसारकॉंने नये त्रह्मके विचार प्रस्तुत करके उनका आाधघार वैदिक शास्त्रसे डंडा । इन सारे कारणोंसे सच्चा वैदिक ज्ञान पिछड गया। कठों वेदान्तिन भान्ति फादपुने बालठका इव । यह परिस्थिति दो गई । इसी स्थितित्े वेदांतके उत्तमोत्तम परिस्कृत शोर तक माए कोर बह्मज्ञान इनसे मिक गया । उससे भौतिक संघषसे उत्पन्न हुई मयेकर परिस्थितिसें सस्कृतिकें भूल वत्त्वका रक्षण हुआ शोर मानासेक छाक्ते पमेटी यह भी एक भार प्रमुख कारण हो सकता हैं क्या ? की अतपुव प्राध्यापक श्री पटवघनने भपने प्रंथमें विट्वत्तापूवक सूचित किंय हुए कार्योकों संचालित करनेके छिए भारतके शासनने राट्रकी जो उच्चतम वेज्ञानिक संस्थाएं स्थापित की हैं उन्द्दींकी कक्षामें यदद काय॑ मूलतः वज्ञा- निक द्ोनेसे सॉपा जावे ऐसी इस टिप्पणी लेखकका मत है भोर वह संघ्य मारत दासन निर्मित सामितिकों सी मान्य दोकर दमारी मध्य मारते राज्य सरकारको भी मान्य होगा एसी उसकी घारणा है । इंदौर मध्य भारत ी ७-१५ ७००५९ ४ वन्य #५. # + ७ डे हि मा. व. कब ढ् थ्दे




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