प्रमेय कमल मार्त्तण्ड | Pramey Kamal Marttand

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Pramey Kamal Marttand by रतनचंद जैन - Ratanchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ९२] महान ताकिक प्रत्योकि/रच यिता होने के - कार हो है। सिलालेखोंके भ्राधार पर इनके समा शी कुल भूषण मुनि माने जाते हैं । हर समय--प्रापका समय भ्राठवीं शताब्दीसे लेकर दसवीं के पूर्वाध॑ तक माना जाता है । भाचार्म जिनसेनने भादिपुराण में एक इलोक लिखा है, इससे भी यही सिद्ध होता है:-- चन्द्यंशु धुन्नवशसं प्रभाचर्द्र कवि स्तुवे । कृत्वा चन्द्रोदर्य येन शखदाज्ादितं जगत्‌ ॥। उक्त चन्द्रोदयका भरथे भ्ाचायं कृत न्याय कुमुदचन्द्र से है । प्रमेयकमल मात्तन्ड धर न्याय कुमुदचन्द्र से हो प्रभाचन्द्राचार्यंका सही समय ज्ञात होता है । यह समय *'भो जदेव राज्ये या जयसिंह देव राज्ये” इस प्रदस्ति पदसे प्रतीत होता है। राजा भोजको योग सुत्रपर लिखी गंयी टीका राज मात्तण्ड है । हो सकता है मार््तण्ड दब्द परस्पर प्रभावी हो ! पं ० महेन्द्रकुमार न्यायाचायें, पं ० कैलाशचन्द्र शास्त्री, मुख्तार साहब तथा नाधूरामणी प्रेमी आझादि विद्वानोंने काफी ऊहापोह के साथ झ्ाचार्यका समय ईस्वी सन्‌ € ८० से १७९४५ तकके बी चमें माना है । यह समय भ्राचायें हारा रचित रचनाओं तथा उत्तरवर्ती रचनाधोंके झाधारपर निश्चित किया है । विद्वेष जानकारी के लिये पंडित महेन्द्रकुमार स्यायाचायें हारा लिखित प्रमेयकमल मार्तण्ड [ सुख संस्कृत मात्र ] की द्विठीयावृत्ति की प्रस्तावना देखनी च। हविये । प्रभाचव्द्राचायेंकी, रचनायें:-- भाचायें प्रभाचन्द्र विदेष क्षयोपदामके घनी थे । जहां तक व्युत्पत्ति का प्रदन है भाप असाधारण व्युत्पन्न पुदष थे । झापने भ्पनी लेखनी न केवल न्याय विषय में ही चलायी भषिवु सभी विषयों पर भापका भ्रसाधारण अधिकार था । दन विषयक जानमें भापकों सभी दर्दनोंका [ भारतीय ] ज्ञान था । वेद, उपनिषद, स्मृति, सांख्य, योग, वेश्वेषिक, न्याय, मी मांसक, बौद्ध, चार्वाक भादि दर्शनोंका भ्रापने भ्च्छा भष्ययन किया था । साथ हो बैयाकरण भी थे, इन्हींने जेनेस्द् व्याकरणपर जैनेन्द्र न्यास लिखा है । इसी प्रकार साहित्य, पुराण, वेद, स्मृति, उपनिषद श्रादिपर पूरा घ्रघिकार था । इनकी रचनाधोंमें उक्त प्रन्योंका कुछ ना कुछ भ्रंश भव्य मिलेगा । पंडित महेन्द्कुमार न्यायाचायेंते भ्रपनी प्रस्तावभामें इस बिषयका सुविस्ठुत विवेचन किया है उसी प्रस्तावनाके भ्राघार पर इस प्रस्तावनाकि कई स्थल लिखे हैं, लवण नेलमोलाके लेसमें पर्नंदी सेठांतिक- का नाम भाया है, कुल मूषण उनके शिव्य थे, तथा प्रभाचन्द्चायं कुल भूख यति के सधर्मा थे । इस लेख में प्रभाचन्दको शब्दाम्भोज भास्कर भौर प्रथित तके अ्रन्यकार लिखा है, .... . ... झविद्ध क्णादिक पद्मनंदि सेद्धान्तिकास्योध्जनि यस्य लोके- कौमारदेव व्रतिता प्रसिद्धि जया स. सो ज्ञानेनिर्धिस्स घीरः: । तच्चछिष्यः कुलभूषणाख्य यतिपदथारित्रवारां निधि: । ' के सिद्धांतौम्बुंधि पारगों नतविनियेस्तत्‌ संधर्मों महान के. “वार




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