भगवान देवात्मा के विशेष लेख और उपदेश भाग - 2 | Bhagawan Devatma Ke Vishesh Lekh Aur Upadesh Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhagawan Devatma Ke Vishesh Lekh Aur Upadesh Bhag - 2 by श्री रत्नचन्द्र - Shri Ratan Chandra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रतनचंद जैन - Ratanchand Jain

Add Infomation AboutRatanchand Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ७ ) के दवारा कलवा देते हैं, कि वह घाहर गए हुए हैं। (१०) इज़ारों घर लाखों माता पिता श्रपती सन्तान के मोह भन्न में प्रस्त हो जाते ई । यह वष्ट महा भयाः शक रोग है, कि जिस के कारण उन्हें श्राप छौर उनकी सन्तान को नाना प्रकार केशो श्रोर मुसीगतों काभागी अनना पडता हे । पशु किसी ऐसे मोह में बन्घे ए नदीं पाए जाति। अपन बच्चों की झसहाय झवस्था में उनकी सहाय करते हुए घोर उन्हें पालते हुए भवश्य देखे जाते हैं, परन्तु ज्यू हि वह चरने घुगने के योग्य हुए, फिर उन का पीछा करते हुए नहीं देखे जाते । इसके विपरीत मनुष्य सारी; उमर-मरते दम तक-मोदद के बन्धन में बन्धा हरा सपनी सन्तान के हि ष्ठि मारा फिरता देखा जाता है, मौर उसका वियोग किसी प्रकार भी खदने जही कर सकता । कितनी दि मातां झपने बच्चों से गालियां खाकर,मारे 'जाकर भी उनके दि पीछे मारी २ फिरती रहती है । कितनी हि स्तयां सन्तान के मोह के कारश 'झपने पतियों से भी बिगड़ बेठती हैं, भर उन सें घन्मेल पैदा हो जाता है। मां से यदह सहा हि नदीं ` जाता, कि उसंके बेटें की भ्रचुचित से घनुच्ित क्रिया पर बाप की बोर से भी कोई रोक टोंक की जाय । एक तरफ चाप षराबर प्मपमे बटे से किसी निषयमे हानि




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now