जैनदर्शन में निश्चय और व्यवहार नय एक अनुशीलन | Jaindarshan Mein Nishchaya Aur Vyavhar Naya Ek Anushilan

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Jaindarshan Mein Nishchaya Aur Vyavhar Naya Ek Anushilan by रतनचंद जैन - Ratanchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ सोलह ] दूर करता हैं और उपचारमूलक असदभूतव्यवहारनयात्मक उपदेश उपर्युक्त शुभोपयोग के सर्वधथा मोक्षमार्ग न होने की श्रान्ति मिटाता है। निश्चयनय द्रव्यदृष्टि से जीव के शुद्धचैतन्यस्वरूप होने के सत्य का बोध कराता है। व्यवहारमय पर्यायदृष्टि से जीव के कर्मबद्ध और मोहणगादि से मलिन होने के सत्य की प्रतीति कराता है। निश्चयनय द्रथ्यदृष्टि से आत्मा के पाप-पुण्य, बन्ध-मोक्ष के अकर्त्ता होने की वास्तविकता का अनुभव कराता है, व्यवहारमय पर्यायदृष्टि से इनका कथचित्‌ कर्त्ती होने का सत्य दृष्टि मे लाता है। इसके अतिरिक्त असदूभूतव्यवहारनय हिसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्म, परिय्रह आदि पापों तथा इनके परित्यागरूप ब्रतादि के अस्तित्व का उपपादन करता है, जो निश्चयनय द्वारा सम्भव नहीं है। इस प्रकार निश्चयनयात्मक उपदेश से जीव को अपने शुद्धस्वरूप और मोक्ष के वास्तविक मार्ग का ज्ञान होता है तथा व्यवहारनयाश्रित उपदेश से अपनी ससारावस्था तथा मिश्वचयमोक्षमार्ग के निकट पहुँचानेवाले व्यवहारमोक्षमार्ग का ज्ञान होता है। इन ज्ञानो को उपलब्ध कर जीव निश्वयमोक्षमार्ग तक पहुँचने के लिए व्यवहारमोक्षमार्ग पर चलता है और निश्चय- मोक्षमार्ग पर पहुँचकर उस पर चलते हुए मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इस तरह से निश्चय और व्यवहार नय वस्तुस्वरूप की प्रतिपत्ति और मोक्ष की प्राप्ति कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। चूँकि जीव को वस्तुस्वरूप की प्रतिपत्ति और मोक्षप्राप्ति कराने में मिश्वय और व्यवहार नय परस्पर सहयोगी है, अत वे परस्पर सापेक्ष है। यह स्पष्टीकरण भी ग्रन्थ मे किया गया है। तीसरी विशेषता यह है कि निश्चयमोक्षमार्ग और व्यवहारमोक्षमार्ग मे जो साध्य-साधकभाव है, उसका प्रतिपादन लेखक ने मनोवैज्ञानिक आधार पर किया है। सम्यक्त्वपरक शुभोपयोग और सम्यक्त्वपूर्वक शुभोपयोग के ब्रत, सयम, तप, अपरिग्रह, भक्ति, स्वाध्याय आदि अनेक अग है। ये अग मोक्षोपयोगी विशुद्धता के विकास मे मनोवैज्ञानिक भूमिका सम्पादित करते है। इनसे मन और इन्द्रियो का परद्रव्यो के चिन्तन और व्यसन ( अधीनता ) से छुटकारा पाने का अभ्यास होता है। उनके वे सस्कार क्षीण हो जाते है जिनसे परद्रव्येच्छारूप तीव्र सक्लेश-परिणाम उत्पन्न होता है, फलस्वरूप विशुद्धता बढ़ती है। बढ़ते-बढ़ते विशुद्धता उस स्तर पर पहुँच जाती है, जहाँ जीव के लिए निश्चयमोक्षमार्ग का अवलम्बन सम्भव हो जाता है। मनोवैज्ञानिक आधार पर ही लेखक ने मोक्षमार्ग की अनेकान्तात्मकता का विवेचन किया है। निश्चयमोक्षमार्ग और व्यवहारमोक्षमार्ग मे साध्यसाधकभाव है, इसलिए वे परस्परसापेक्ष हैं। अत: मोक्षमार्ग अनेकान्तात्मक है। व्यवहारमोक्षमार्ग




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