रामधारी सिंह दिनकर | Ramdharisingh Dinkar
श्रेणी : जीवनी / Biography
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.7 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रासानी से अच्छी नौकरियां प्राप्त कर लेते थे । उनके भीतर कबित्व छात्र जीवन में ही भली भांति प्रस्फुटित हो उुका था पर उनकी ज़िन्दगी उनके परि-- चार के नाम गिरवी हो चुकी थी । निर्धन परिवार ने पेट काटकर उन्हें पढ़ाया था श्र यह श्रावव्यक था कि वे पैसे कमाकर उसकी देनिक श्रावस्यकताश्ों की पुत्ति करें । उन दिनों प्रत्तियोगी-परीक्षाएं तो होती नहीं थीं डिप्टीगिरी खासकर उन्हें सिलती थी जिनकी मदद वड़े लोग करते हों । लेकिन इन बड़े लोगों ने दिनकरजी की श्रोर ध्यान नहीं दिया । निदान १९३३ में उन्होंने एक नये हाई स्कूल के प्रधानश्रध्यापक का पद कदूल कर लिया श्रौर वे यथाशक्ति परिवार _ की सेवा करने लगे । कोई श्राइचयें नहीं कि जीवन के उषःकाल में ही वे ज़मीं-- दारी-प्रथा के विरुद्ध हो गए । ज़मींदारी-प्रथा और घनतंत्र के खिलाफ उनकी कविताओं में जो कठ्ुता व्यक्त हुई उसके सुल में बहुत कुछ वयर्क्तिक श्रनुभव ही है। १६३४ ईं० में उन्होंने बिह्वार सरकार के अधीन सब-रजिस्ट्रारी रवीकार -की। १६४३ में उनका त्तवादला युद्ध-प्रचार-विभाग में हुआ । १९६४७ में वे थिह्ार सरकार में प्रचार-विभाग के उपनिर्देशक और १४६४० में मुजफ्फरपुर कालेज में हिन्दी-विभागाध्यक्ष हुए । यहू क्रम १९४९२ के माच॑ तक चलता रहा । १६५२ के १० मा को उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिया श्रौर वे राज्यसभा के कांग्रेसी सदरय हो गए । तव से ये इसी पद पर रहकर हिन्दी भाषा श्रौर साहित्य की सेवा कर रहे हैं । शी भगवतीचरण वर्मा ने लिखा है दिनकर हमारे युग के यदि एकमात्र नहीं तो सबसे भ्रधिक . प्रतिनिधि कवि हैं । किन्तु श्रचरज की वात है कि इस कत्रि के जीवन के सर्वोत्तम दिन श्रीर उन दिनों के भी सर्वोत्तम भाग ज़रूरतमन्द परिवार के लिए रोटी कमाने में निकल गए । दिनकरजी भी विलाप करते हैं साहित्य समभने श्रौर लिखने का मुझे समय कव मिला ? दिन तो नौकरी में जाता था हां जिस समय झ्रफसर बैर्डमिटन या ताश खेलते थे उस समय घर में चन्द होकर मैं पंक्तियां जोड़ता था । ऐसी भ्रघूरी कविताएं भी मेरी कापियों में बहुत हैं जिनकी दो-चार् पंक्तियां ही लिखी जा सकीं क्योंकि दफ्तर जाने का समय निकट श्रा पहुंचा श्रौर मैं कविता पूरी नहीं कर सका । पूजीवादी व्यवस्था के भ्रन्दर कवियों चिन्तकों भर कलाकारों का जो बुरा दिनकर श्प्र्
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madhav jangid
at 2020-06-07 04:32:57