राजमुकुट | Rajmukut

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दखिनी--य प्रथम अंक--प्रथम दृश्य... ४ ः ह क्‍या सनती हूँ चित्तौड़-कुल भूपण (इस .. . देश ने सदैव दीन ओर ्ाते की सुनी है। . विक्रम-जा जा में कुछ भी न सुन गा । इस वश में श्ंब . तेरी चैन की बंशी नहीं वज सकती । यदि तू 1 ल्‍्लाविगी तो. अपने उत्सव . चल्लूगा। उसमें के गीतों को श्ंतरित कर तार मम मेले. तेरा क्रंदन डूव जायगा । पे ः दखिनी-उाप यद्द कया कई रहे हूँ मद्दाराना देश के _ ज्त्येक सिरे में झकाल छाया हुआ है प्रजा भूख से तड़प _ तड़प-कर मर रदी है। विक्रम--उसे मरने दो । क्यों मुनि चसकीं फसल काटी - . न्श्दु में ५ 04 डर. है ? देश में श्काल पढ़ा है तो क्या बादलों का राजा - उपखिनी-समैं सीख माँगकर अपने वाल-बच्चों का पालन कर रही थी । ापकें कर्मचारियों ने कोई बर्तन भी नहीं -. रू बद ड् . छोड़ा | में क्या करू स्णजीत--किसी श्र घेरे देव-मंदिर में श्रपने फटे भाग्य के लिये दीपक जला । जा निकल यहाँ .से ।[ निकल जाने का. संक्रेत करता दे । | दखिनी-उुम राजा के झूठे मित्र हो तुम्दीं ने इन्हें कमार्ग दिखाया है. विक्रम राजतिलक के समय ऐसे नददीं . . थे । में मद्दाराना के न्याय की मिखारिन हूँ । [ अचल पसारकर चुदनें टेकती है । )




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