रामायण का आचार - दर्शन | Ramayan Ka Aachar Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.52 MB
कुल पष्ठ :
321
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अम्बा प्रसाद श्रीवास्तव - Amba Prasad Srivastav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सं प्रमाणित होता है जिनके अनुसार देवराण इन्द्र की कन्या जयन्ती का बिवाह असुर गुरु शुक्राचार्य के साथ हुआ था अथवा स्वय इन्द्र ने ही पुल्लाम दत्य की कन्या शी के साथ विवाह कियां था। स्वय रायण के पिता विश्रवा की दा पत्नियों को उल्लेख है। विश्रवा की एक पत्नी रामायण के ही पात्र भरदाज कषि की कन्या थी आए दूसरी पत्नी ककसी सुमाली राक्षस की कन्या थी। अर्यात् विश्ववा का विवाह एक ऋषि-कन्या आर एक राक्षस कन्या के साथ हुआ था। उपर्युक्त दो चार वेवाहिक सम्बन्ध दोनो वर्गों के बीच वढती हुई दरार को पाटने म किचित् भी सहायक नहीं हुए। इन्द्र पद क विरुद्ध सघप लगातार वढता ही चला गया। फ्र्ेद में स्पप्टतया दो प्रकार की प्रार्थनाएँ मिलती है। एक प्रकार उन प्रार्नाओ का हे जिनमे आर्यों ये नि शेप वर्ग को अलग मानसऊर केवल दस्युआ के प्रति आक्रोश प्रकट करते हुए उनके पिनाश की कामना की गयी है। धीरे धीरे जव आर्यों के एक वर्ग ने भी अपनी पूरी शक्ति के साथ इन्द्र के विरुद्ध संघर्ष छंड दिया तब इन्द्र के पंसघर आर्यों ने उनकी भी अपना शत्रु घोषित कर दिया । दोनी पक्षों भ अनेक बार भयकर युद्ध भी हुए आर अनेक युद्धा में इन्द्र के पक्षधर आर्थो को विपक्षियां से पराजित भी हाना पड़ा । इस संघर्ष का सबसे पहला परिणाम यह हुआ कि दस्युओ ओर विराधी आर्यों को एक श्रेणी मे मान लिया गया। ऋग्वेद मे ही दूसरे इस पकार के मन्त्र उपलब्ध हैं जिनमे इन्द्र से दस्युओ आर शत्रु आर्यो-दोनों के विनाश की प्रार्थना की गयी है। दूसरे वर्ग के कुछ मन्त्र यहा उद्धृत किये जा रह हे 1. अयमु एमि विचाकशद विचिन्यन दासम् आर्यम्। (दास आर आय कं वीच विभेद करता हुआ में आ रहा हूँ 0 जा10 86 19 ४. त्वम् तान इन्द्र उभयान् अमियान् दासा वृनाणि आर्या च शूर वधीर। हि इन्द्र तुम हमारे इन दास और आर्य शय्ुओ को नष्ट कर दो 93353 3. हतो बूजाणि आर्या हती दासानि सत्पती हतों विश्वा अपद्विप (ससपुरुपो क॑ अधिपति है इन्द्र हमारे आर्प शुओ का सहार करो। हमारे दास शतुओ का सहार करो। उन सबको नप्ट कर दो जां हमसे घृणा करते है॥ --6 60 6 4. दासा च बृया हतमू आर्योणि। (हमारे आर्य और दास शरुओं का वध करो जा 851 5 यो नो दास आर्यों वा पुरुष्टुत अदेय इन्द्र युधये चिकेतति। (जो भी जदेव दास या आर्य हमसे युद्ध करने के लिए आए उनको हम पराजित करे 0 जा0 28 3 सुर अतुर आदि जातियों का बालाबिफ स्वरूप 15 _.
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