लोक परलोक का सुधार (काम के पत्र) भाग दो | Lok parlok ka Sudhar

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Lok parlok ka Sudhar by श्री हंसराज - Shri Hansraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रादकी आवइयकता वेचारे कहीं नरकोंमें पड़े हों इसलिये श्राद्ध-तपंगादि सभीके करने ही चाहिये | मुक्ति हो गयी होगी तो आपके किये हुए उस सत्कर्म- का फल आपके सन्चितमें लौट आवेगा और उससे आपको ययायोग्य सुख-सम्पत्ति तथा शान्तिकी प्राप्ति होगी | रही दूसरी योनिमें जानेकी बात सो उसमें भी श्राद्-तपंणादि- का उपयोग हैं । वायुप्रबान और तेजप्रधान शरीरोंमं तो उन पितरोंको प्राय यह पता रहता है कि हम अमुकके सम्बन्धी हैं हमारी अमुक सन्तान इस समय पृथ्वीपर है । वे तो सम्तानसे श्राद-तपंणादि चाहते हैं--खास करके पितृछोक या यमलोकमें रहनेवाढे बायुप्रभान रारीखाले जीव क्योंकि उनके श्षुवा-पिंपासाकी शान्तिके साधनका प्राय अभाव-सा रहता है । परन्तु मनुष्य पशु पक्षी आदि स्थूछ योनियोंगं भी उनके छिये पूर्वजन्मकी सन्तानद्वारा दिये हुए पदार्थोका उनके उस योनिके अनुरूप फल मिठता है । जैसे इस समय आपका कोई सम्बन्धी हृर्नि-्योनिमं है---आप उसके छिये किसी श्रादवके योग्य ब्राह्णकों ह्ठुभा-पूरी खिछाते हैं तो उसको वहाँ वह धासके रूपमें मिल सकता है । इसी प्रकार सबको मिठता है | उनके छियें किये हुए शान्ति-खस्त्ययन खाध्याय प्रणामादिसे उनको शान्ति और तृप्ति मिछती है | एक जगहद आया है कि जब भगवान्‌ श्रीकृष्ण जाम्बवानके साथ उसकी गुफामें युद्ध कर रहे थे तत्र उनके छोटनेें बहुत समय बीत गया | बाहर श्राट देखते-देखते जब्र साथी लोग थक गये तत्र उन्होंने द्वाकका लौटकर अपना ऐसा अनुमान वतलाया कि सम्भवत श्रीकृ्णका निधन हो गया है । तब घखालोंने उनके छिये ययायोग्य श्राद्धादि क्रियाएँ की |




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