गीताभवन-दोहा-संग्रह | Geetabhavan Doha Sangrah
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.29 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand) | कथा कीरतनरातदिन, जाके. उधम. येह।
का हक
(९५)
सकल वस्तु संसारकी, कहूँ खिर हे नाहिं।
तिहि कारण ज्ञानी पुरुप, चित न धरत तिहि माहिं ॥१०९॥।
[ मश्ुताकों सब मरत हैं, प्रथुको मरे ने कोय |
1 जो कोई प्रशुको माँ, तो प्रश्ुता चेरी होय ॥११०॥
4 चलती चाकी देखिके, दिया कबीरा रोय ।
दो पाठनके श्रीचमें, साबित रहा न कोय ॥१११॥
जाके मन विश्वास है, सदा प्रभू हैं संग।
कोटि काल झकझोरई, तऊ न हो चित भंग ॥११२॥
जाको राखे साइयाँ, मारि सके नहिं कोय ।
चाठ नचाँका करि सकें, जो जग बरी दोय ॥११३॥।
तसवर सरवर संतजन, चौथे. बरसे मेह।
परमारथके कारन, चारों... धारे देह ॥११४॥
साधु होय संग्रह करें; दूजे दिनको.. नीरें ।
तरे न तार और को, यों कथ कहे कवीर ॥११५॥।
कथा कीर्तन कलि विषे, भवसागरकी नाव ।
कह कबीर जग तरनको, नाहीं ”” और उपाव ॥११६।॥।
( कथा कीरतन करनकी, जाके” निसदिन रीति ।
1 कह कपीर बा दाससे, निश्चय कीजे प्रीति ॥११७॥।
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कह कबीर ता साधुकी, हम. चरननकी खेह ॥११८॥ |
सभी रसायन हम करी, नहीं नाम सम कोय ।
रंचक घटमें संचरें, सब तन कंचन होय ॥११९॥ |
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