गीताभवन-दोहा-संग्रह | Geetabhavan Doha Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| कथा कीरतनरातदिन, जाके. उधम. येह। का हक (९५) सकल वस्तु संसारकी, कहूँ खिर हे नाहिं। तिहि कारण ज्ञानी पुरुप, चित न धरत तिहि माहिं ॥१०९॥। [ मश्ुताकों सब मरत हैं, प्रथुको मरे ने कोय | 1 जो कोई प्रशुको माँ, तो प्रश्ुता चेरी होय ॥११०॥ 4 चलती चाकी देखिके, दिया कबीरा रोय । दो पाठनके श्रीचमें, साबित रहा न कोय ॥१११॥ जाके मन विश्वास है, सदा प्रभू हैं संग। कोटि काल झकझोरई, तऊ न हो चित भंग ॥११२॥ जाको राखे साइयाँ, मारि सके नहिं कोय । चाठ नचाँका करि सकें, जो जग बरी दोय ॥११३॥। तसवर सरवर संतजन, चौथे. बरसे मेह। परमारथके कारन, चारों... धारे देह ॥११४॥ साधु होय संग्रह करें; दूजे दिनको.. नीरें । तरे न तार और को, यों कथ कहे कवीर ॥११५॥। कथा कीर्तन कलि विषे, भवसागरकी नाव । कह कबीर जग तरनको, नाहीं ”” और उपाव ॥११६।॥। ( कथा कीरतन करनकी, जाके” निसदिन रीति । 1 कह कपीर बा दाससे, निश्चय कीजे प्रीति ॥११७॥। ७ बलिकिप नि #किनत ०-० ७ कि) सीवान रथ पहरर बदतर सदा पद सका “वार रहा सदर साल ससुर सरदार! वकालत वार करार वाला जरा सकॉरर कार सारा सवचाह पी / किक ०-5 विक-८ >किकर हक ७करिय> 9-क मै. न दिक- 8-७5. 2-० किक >कर्लिकन, किक चिकन लर्निकद बनियान, के कमिक-5 ह-कदि. न. नियम दर पा पर रशारहाकरर पका एस! कह कबीर ता साधुकी, हम. चरननकी खेह ॥११८॥ | सभी रसायन हम करी, नहीं नाम सम कोय । रंचक घटमें संचरें, सब तन कंचन होय ॥११९॥ | लक लि न्चन््ठी




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