रामचरितमानस | Ramcharitmanas (sansodhit Mool)

Ramcharitmanas (sansodhit Mool) by तुलसीदास - Tulaseedas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ रामचरितमानस श्४ प्रनवों अथम भरत के चरना । जासु नेम ब्रत जाइ न चरना । राम चरन पंकज मन जात | लुवुध मधुप इव सजे ने पाप । बंदों ठछिमिन पद जलजाता । सीतल सुभग भगत सुखदाता रघुपति कीरति विमठ पताका । दंड समान भयेठ जस जाका | सेप. सहस्रसीस जगकारन । जो अवतरेड भूमि भय टारन । सदा सो साजुझूठ रह भोपर । कृपासिंघु सीमित्रि गुनाकर। रिपुस्दन पद कमठ नमामी सर सुसीठ भरत अलुगामी । महावीर घिनवों हनुमाना । राम जासु जस आपु चलाना ॥ प्रनवों पवनकुमार खल बन पावक ज्ञान घने । जासु हृदय आगार घसहिं राम सर चाप घर ॥ १७ ॥ कपिपति रीछें निसाचर राजा । अंगदादि जें कीस समाजा । घंदों सब के चरन सुद्दाये । अधम सरीर राम जिन्ह पाये | श्युपति चरन उपासक जेते । खग संग सुर नर असुर समेते । चंदीं पद सरोज सब कफेरे। जे पिह् काम राम के चेरे। सुक सनकादि भगत मुनि नारद । जे मुनियर विज्ञान बिसारद । ग्रनवों सबहि घरनि घरि सीसा । करहु कृपा जन जानि मुनीसा । जनक्सुता जगजननि जानकी । अतिसय प्रिय करुनानिधान की । ताके जुग पद कमल मनात्रों । जासु कृपा निर्मठ मति पावों । पुनि मन बचन कर्म रघुनायक । चरन कमल बंदी सब लायक । राजिव नयन धरें घहु सायक । भगत च्रिपति भंजन सुखदायक ॥ गिरा अर्थ जल बीचि सम देखिअत मिन्न न सिस्न चंदों सीताराम पद जिन्दहिं परम प्रिय खिन्न॥ १८ ॥ शनरे दे द घर ४ १... करे-४ ५ द कदियत १ ३. रन४ पे रिछ १ हे. ह




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