पुण्य स्मृतियाँ | Puniya Smritiyan

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Puniya Smritiyan by तुलसीदास - Tulaseedas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घुलसीदास १९. ৭৬ रीं उपरोक्त सव सबाल एक ही मित्र के नहीं हैं, परन्तु, भिन्न सिन्न मित्रों ने भिन्न समय पर जो कुछ कहा है और लिखा है, उसका यह सार है। यदि ऐसी एक टोका को लेकर देखें तो सारी की सारी रामायण दोषसय सिद्ध को जा सकती है | सम्तोष यद्दी है कि इस तरह प्रत्येक प्रन्थ और प्रत्येक- मनुष्य दोपमय सिद्ध किया जा सकता है | एक चित्रकार ने अपने टीकाकारों को उत्तर देने के लिये अपने चित्र को प्रद्‌ शनी मे रखा अर नीचे इस तर्द लिखा “इस चित्र में जिसको जिस जगह दोष प्रतीत दवों, वह उस जगह अपनो कलम से. चिह कर दे। परिणाम यह हुआ कि चित्र के अंगनअत्यज्ञ दोपपूरे वताये गये । मगर बसतुस्थिति यह्‌ थी फि बट चिन्न अत्यन्त कलायुक्त था । टीकाकारो ने तो बेद, वायवल और कुरान में भी बहुतेरे दोष बताये हैं परन्तु उन प्रन्थों के भक्त उनमें दोषों का अनुभव नहीं करते। प्रत्येक ग्रन्थ की परीक्षा पूरे प्रन्ध के. रहस्य को देखकर ही की जानी चादहिये। यह वाद्य परीक्षा है ।. अधिकांश पाठकों पर अन्थ विशेष का क्या असर हुभा है यह देख कर ही भन्‍्थ की आन्तरिक परीक्षा की जावो है । और किसो भी साधन से क्यों ल देखा जाय रामायण को शेता दी सिद्ध दोषी है। अन्थ को स्वोत्तम कहने का यद्द अर्थ कदापि नहीं कि उससें एक भी दोष नदीं है । परन्तु रामचरितमानस के लिये यह दावा अवश्य है कि उसमे लाखो मचुष्यो को शान्ति भिली है । जो लोगः इश्वर-विमुख ये वे इश्वर के सम्मुख गये हैं और आज भी जा




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