भारतीय पुरातत्व | Bharatiya Puratatva
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.78 MB
कुल पष्ठ :
443
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द जवाहिरलाल जैन
बडौदा-निवास के समय में ही मुनिजी का वहा नवस्थापित गायकवाड आओरिएन्टल सिरीज के मुख्य
कार्यकर्ता श्री चिमनलाल डाह्माभाई दलाल से परिचय हुश्रा जो समानशील और समब्यसन के कारण प्रगाढ
मैत्नी मे बदल गया तथा परिणामस्वरूप कुमारपाल प्रतिबोध नामक बृहतुकाय प्राकृत ग्रन्थ मुनिजी हारा
सपादित होकर प्रकाशित हुआ । की
तल
इसी समय पूना मे भाण्डारकर प्राच्य त्रिद्या सशोघन मदिर की स्थापना हुई । इस सस्थान के
सस्थापको का एक शिष्ट मडल बम्बई के जैन समाज से मिलने श्राया । सुनिजी इस समय बम्वई में हो
चातुर्मास कर रहे थे । मडल का परिचय इन से भी हुमा और उसने मुनिजी को पुना झाने का निमस्नण
दिया । चातुर्मास के पश्चातु मुनिजी पदयात्रा करते हुए पूना पहुचे । इस सस्थान को देखकर वे बड़े प्रसन्न
हुए श्र स्वय भी उसके विकास मे यथाशक्ति योग देने का निश्चय करके वही रह गए । यहीं उन्होने जन
साहित्य सशोघक समिति की स्थापना की झऔर जेन साहित्य सशोधक नामक चैमासिक खोज पत्रिका श्रौर
ग्न्थमाला का प्रकाशन प्रारम्भ कर दिया ॥
मुनिजी का पुना-निव स उनके जीवन मे नया मोड देने वाला साबित हुमा । १९१६-१७ से वे
पूना में रहने लगे थे । उनके निवाम का स्थान लोकमान्य तिलक के निवास के निकट ही था । इतिहास,
प्राचीन सस्कृति तथा शोध मे लोकमान्य की रूचि श्रौर ज्ञान भी झगाघ था, श्रत दोनो में शीघ्र ही परिचय
हो गया और सुनिजी लोकमान्य की देश की स्वाधीनता के लिए तड़प तथा उनके राजनैतिक विचारों से
भ्रत्यन्त प्रभावित हो गए । कुछ क्रातिकारी विचारों के युवकों के ससर्ग मे भी वे आये । राजस्थान के प्रसिद्ध
क्रातिकारी श्री श्रजु नलाल सेठी से भी उनबा वही परिचय तथा मंत्री हुई । उनकी विचार धारा भी उसी
आर बहने लगी ।
मुनिजी के हृदय मे फिर श्रतद्व न्द्व खडा हो गया । जैन श्वेताबर मूतिपूजक साधुचर्या भी उन्हे खलने
लगी । देश की पराधघीनता की परिस्थिति में निष्क्रिय से तथा बाह्य त्यागी जीवन से उन्हें श्ररुचि हो गई
श्रीर वे पुन कोई नया माग खोजने लगे । १९१९ में वे पुना मे ही सर्वेट्स झाँफ इण्डिया सोसाइटी के भवन
में महात्मा गाघी से मिल चुके थे और उनके साथ विचार विनिमय करके उनके झ्राश्रम मे प्रविष्ट होने का विचार
भी बना था, पर अत में जब झ्सहयोग झादोलन उन्होने प्रारम्भ किया श्रौर अग्रेजी शिक्षा के वहिप्कार के
साथ तथा उसके स्थान पर राष्ट्रीय शिक्षा के विचार को मुत रूप देने के लिए अहमदाबाद में राष्ट्रीय विद्या
पीठ स्थापित करने की योजना बनने लगी तथ गाघीजी ने मुनिजी को याद किया ।
इसके बाद की घटना का जिक्र मुनिजी के शब्दो मे ही जानना श्रधघिक रुचिकर होगा ---
“महात्मा जी का बबई आने का आर उनसे मुकते मिलने का जब सदेश मिला तो मैं श्रकस्मात् बडी
असमजसता की स्थिति में पड गया 1 यदि मुझे महात्माजी से मिलना है तो कल ही यहा से रेलगाड़ी में बैठकर
मुके बबई पहुँचना चाहिए । गुजरात राष्ट्रीय विद्यापीठ को स्थापना य॒ योजना के वारे में इससे पहले मेरे
मित्रो द्वारा सुके काफी जानकारी मिल गई थी ओर बहुत ही निऋ्रठ समय में उसकी स्थापना होने वाली है
श्रौर उसमें मुझे निश्चित रूप से योग देना है यह भी मेरे कई मित्रो ने सुचित कर दिया था । इन सब बातों
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