राय कमल | Rai Kamal

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Rai Kamal by ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyayहंसकुमार तिवारी - Hanskumar Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राय कमल आओ बगुढाभगतजी चूड़े पर कीआ का पंख खॉंस ठो न --और वह फिर हँसनें उगती । उसकी मा कामिनी उस पर बिगड़ उठती रूखे शब्दों में उसे फटकारती हुई कहती-घजा जा जहन्लुम में चढी जा सुँहों सी भैंस जेसी ठड़की और - - रसिक बीच ही में रोककर कहता--अरे नहीं नहीं झिड़को मत उसे वह्द तो आनन्दमयी हे--राय कम सहारा पाकर कसढिनी कह बेठती--भला तुम्हीं बताओ बगुछाभगतजी वह मुँह सें कपड़े डाठकर हसते-हूसते छोटपोट हो जाती । बुहदारते-बुद्दारते हाथ का झाड़ू तानकर मा कहती--फिर वही बात ठहर तो जरा घेरे के उस पार से महतो का छड़का रज्नन पुकारता-कमली और कमली भाग जाने के बहाने दौड़ना शुरू कर देती । कहती जाती--ढगा अपने ही मुँह पर झाड़ू छगा गीत सीखे मेरी बा में चढी बेर खाने को । मारे गुस्से के गुर्राती हुई-सी मा कहती--दूर हो जा एक- बारगी निकट जा तू । मा की डॉट-डपट की बह पर्वा ही नहीं करती चढ देती । सा पीछे ठगी दरवाजे तक आती और जोर से पुकारकर कहती-कमली कहा मान ठौट आ ठौट आ । इतनी बड़ी ठड़की भला ठोग क्या कहूँगे इसकी भी खबर है तुझे अरी ऐ कुछ बोरन छड़की कमली १9




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